बुझते चिराग

जुलाई का महिना वैसे तो बहुत गर्म होता हैं लेकिन ख़त्म होते-होते इसकी सुबह ठंडी होने लग जाती हैं,  मेरे गाँव में कल ही इंद्र देव मेहरबान हुए थे तो आज की सुबह में कुछ अलग ही फीलिंग आ रही थी.
आज मेरी जिन्दगी में एक नये युग की शुरुआत होने जा रही थी मैंने अपनी जिन्दगी का पहला पड़ाव पर कर लिया था.

वो पड़ाव था घर के पास की स्कूल से 5वीं पास कर लेना| लास्ट 2 क्लास में यद्धपि काम तो मेरा एक ही था वो था गुरु जी को टाइम पर चाय बना के पिला देना और उनकी मोटर साइकिल को साफ कर देना,
लेकिन इसका  मुझे बहुत ही बड़ा फल मिला, वो ये था की 7 बच्चो की क्लास में मैं प्रथम आ गया था.

एक और बात थी जो मेरे लिए बहुत ही ज्यादा सम्मान वाली  बात थी वो यह की मुझे उस 5 इंच लम्बाई वाली नेकर से छुटकारा मिल गया जो कभी-कभी ढंग से नहीं बैठने पर बे-इज्जती भी करवा देती थी, पूरी क्लास को ब्रह्माण्ड के 9वे  ग्रह के दर्शन हो जाते और घर जाते टाइम रास्ते में ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती. 

लेकिन भगवन सब की सुनता हैं और आज मेरी भी सुन ली,  मुझे इससे छुटकारा मिल गया और फुल पेंट पहनने को  मिल गयी. 

आज मैं बहुत बड़ा बन गया था क्यूंकि गाँव की बड़ी स्कूल मैं पढने जा रहा था, प्रथम स्थान का गोल्ड मैडल मेरे दिमाग में था तो कॉन्फिडेंस की तो कोई कमी ही नहीं थी. 

स्कूल पहुचते ही थोरी देर में प्रार्थना शुरू होने वाली थी सो हम भी लग गये लाइन में, इतना ज्ञान तो  हम अर्जित करके ही आये थे की प्रार्थना में छोटे आगे और बड़े पीछे खड़े  होते हैं,  इस हिसाब से हम आगे से तीसरे  स्थान को काबिज करने में कामयाब रहे.

पीछे कौन खड़ा है इससे हमें  अभी कोई मतलब नहीं था. मतलब था तो सिर्फ उस बात का की हम फर्स्ट रेंक वाले हैं और गुरु जी सिर्फ हमें ही तव्वजो देंगे.

क्लासेज सावधान....!!

मेरा कलेजे ने न जाने कब अपनी  धड़कन बढ़ा ली,  पता ही नही चला. और मैं बस फटी-फटी  आँखों से उस 6 फीट लम्बे, बड़ी- बड़ी विषमबाहू त्रिभुज जैसी मुछों वाले गुरुजी  को देखता ही रहा. 

ये क्या ससुरा इधर तो सारा मामला ही अलग था. सारा जोश ही ख़त्म हो गया.

खैर प्रार्थना सभा ख़त्म हो गयी हम आ बैठे अपनी क्लास में,

वैसे तो  अब मुझे किसी की याद नहीं आ रही थी लेकिन एक प्राणी जरुर पीछे रह गया उसका थोड़ा मलाल जरुर था, उसका नाम यही बता देता हूँ क्योंकि  कहानी आगे बहुत सीरियस होने वाली हैं और उस उधेडबुन में क्या मालूम नाम बता ही नहीं पाऊ.

वो प्राणी था ......नहीं ... बल्कि थी  " चुटका"

चुटका मेरी स्कूल की सबसे खुबसूरत कन्या थी..

लेकिन सच बताऊ ना तो इस स्कूल में  आते ही चारुमती से  मुलाकात क्या हुई..... चुटका की यादें  बाबर के ज़माने की किसी  सेठ की बेटी की कहानी जितनी पुरानी लगने लगी .

 5वीं तक हमने न तो कभी  कमीज पेंट में डालना सीखी न  ही  होम वर्क के लिए बैग में नोटबुक डालना|  लेकिन यहाँ मामला ही अलग था ... तीसरे ही दिन उन  विषमबाहू त्रिभुज जैसी मुछों वाले गुरु जी ने पिछवाड़े पर ऐसा डंडा जमाया की पुरे अगले 5 साल तक कैसे रहना हैं इस स्कूल में,  सब समझ आ गया

ये मेरी जिन्दगी में डंडा खाने का  पहला अनुभव था.... कैसा था,  यह  आप सबको मालूम ही है.
2 दिन तक मम्मी से छुप-छुप कर बर्फ से सेक करता रहा. और भी बहुत कुछ किया जो मैं आपको नहीं बता सकता|

अभी तक इस क्लास का मैं ही टोपर था लेकिन दुसरे ही दिन क्लास मैं जब सबके इतिहास का विश्लेषण हुआ टो मालूम हुआ मेरे जैसे 10 और टोपर भी थे इस क्लास में. इन टोपर में ज्यादातर तो मेरे जैसे ही टोपर थे जो गुरुकृपा से ही टोपर बने थे.
लेकिन रियल टोपर जो थी उसका जिक्र मैं पहले ही कर चूका हूँ.... और वो थी चारुमती........?

हर क्लास में कुछ बच्चो में टॉप रहने की रेस लगी रहती हैं और कुछ बच्चें ऐसे  होते है जो लाइफ में ऐसी  रेस से दूर रहना ही पसंद करते हैं.
आज के बाद मैं दुसरे टाइप के बच्चों में शामिल हो गया.

हर एक क्लास में वैसे अलग-अलग स्वभाव के बच्चें होते हैं.... लेकिन हर क्लास में एक शाहरुख़ जरुर होता हैं

और मेरी क्लास में भी एक शाहरुख़ मिल गया|

श्री नागेश (वास्तविक नाम नागेन्द्र ) एक निजी स्कूल से 5वी पास करके आया था. और वो भी टोपर था.
लेकिन उसकी आदतों से कोई भी बता सकता था की वो भविष्य में किसी गेंग  का कमांडर जरुर बनेगा,  कुछ ही दिनों में उसने अपना शुरुर दिखाना शुरू भी कर दिया|

आज  इस स्कूल में मेरा तीसरा दिन था,  क्लास शुरू ही हुई थी की प्रिंसिपल साहब और साथ में 1 औरत गुस्से में लाल पिली हुई एकदम लेडी भीम की तरह तरह दिख रही थी मेरी क्लास में आ धमकी.

नागेश कौन हैं?

प्रिसिपल साहब ने अपनी बात पूरी की नहीं उससे पहले ही डॉन नागेश खड़ा हो गया....
लेडी को देखते ही उसे सब समझ आ चूका था...

और नागेश में डबल जोश आ गया अब  नागेश की जगह शाहरुख खड़ा था..

प्रिंसिपल साहब ने अगला प्रश्न एक जोरदार डंडे से किया..... लेकिन शाहरुख पर इसका कोई असर नहीं हुआ....

बल्कि बॉडी जमीन के आधार से बिलकुल समकोण पर सीधी हो गई|

रास्ते मैं गर्ल्स को क्यों घूरता हैं रे?

इस प्रश्न पर शाहरुख का मुह शंख जैसा जरुर हो गया लेकिन जुबान अभी भी शंख के भीतर ही थी.

एक और डंडा.......... और शाहरुख का मुह शंख से गोल मटके जैसा हो गया और होठों के बीच से हल्की-हल्की दर्दानी हवा निकालनी शुरू हो गई.. पर  नागेश का एक्शन बिलकुल शाहरुख़ जैसा ही था.

कुछ बोलता क्यों नहीं?

स्कूल में आते ही बदतमीजी... ये माता जी क्या बोल रही हैं?
माता जी ??????
शाहरुख़ के कलेजे नही उतरा ..... और दोनों कंधे एक साथ ऊपर होकर डंडे को देखकर तुरंत नीचे हो गये.

हाँ साहब ये मेरी चारू को पुरे रास्ते परेशान करता हैं.. पिछली स्कूल में भी इसने बहुत परेशान किया था.

चारू.....?

नाम क्या सुना मैंने,  अब तक जो शाहरुख मेरे सामने था वहां  मुझे अब शक्ति कपूर नजर आ रहा था... आये भी क्यों नही आखिर उस चारू के हम भी तो ..... दीवाने बन गये थे..

हाथ निकाल बदतमीज....
नागेश ने हीरो के अंदाज में ही अपना हाथ आगे कर दिया... और डंडा दे दना दन.... 1..2..3... और डंडश्याम खुद टूट गये .... उधर  नागेश का चेहरा पंचभुज जैसा जरुर हो गया था... लेकिन बॉडी अभी भी समकोण पर ही थी...  साहब बाहर निकले..

और इधर नागेश बाथरूम में पहुच चूका था...

खैर स्कूल टाइम के  ऐसे किस्से तो बहुत होते हैं.. लेकिन कुछ बाते जो होती हैं उसे हम जिन्दगी भर नहीं भुला सकते|

अभी 3 माह बीत चुके थे.. और स्कूल में अर्धवार्षिक परीक्षा का माहौल बन चूका था|

आज महीने का आखिरी दिन था तो  छुट्टी जल्दी हो गई..  मैं साइकिल स्टैंड में अपनी साइकिल पर बैग रखकर जूते ढंग से पहन रहा था. तभी एक विशालकाय हाथी मेरे पास आता हैं और गाय जैसी मासूमियत के साथ बोलता हैं

हजारी ........

तेरी तो ..... मेरा नाम हेमेन्द्र हैं..

(लेकिन उसकी कोई गलती भी तो नहीं थी हेमेन्द्र नाम सिर्फ कागजों में ही था.. आस-पड़ोस के और घर में तो  मैं हजारी ही था. फिर स्कूल में 2-3 पडोसी तो  आते ही हैं तो यहाँ भी हजारी ही था )

मैंने उसकी काया का  सम्मान करते हुए अपना वॉल्यूम धीरे कर लिया.


हाँ बोल..? मैंने कौहतुलवश  उसे देखा.

मुझे आपकी हेल्प चाहिए ?

मुझसे हेल्प ???

हाँ तुमसे  हेल्प

समझ  मैं नहीं आ रहा था इस विशायकाल हाथी की मैं हेल्प करू.. और ऐसा कौन हैं जिसने इससे पंगा ले लिया|

खेर अपनी इज्जत और हेकड़ी तो रखनी जरूरी थी मेरे लिए.
उसके कंधे पर हाथ रखकर शर्केश्वर बनकर  बोला बता किसने पंगा लिया हैं तुझसे?

पंगा किसी ने नही लिया भाई... उसकी आवाज मैं इतनी मासूमियत थी की वो उसके डील डोल से मैच ही नही कर रही थी.
तो क्या हेल्प करू? .. मैंने तो आज तक इस कामो में ही हेल्प की थी. लेकिन ये प्राणी आज कुछ और ही चाह रहा था,

उसने बोला की उसका होम वर्क बाकि हैं

तो यहाँ कौनसा पूरा होता था. मेरा तो पुरे एक वीक लेट चलता था.

मैंने बोला... एक काम  कर तू   जा चारुमती से बोल  मेरा नाम लेकर. 

मैं अपनी साइकिल पर बैठ कर उसे राकेट बना चूका था.

***
अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारियां जोरो पर थी की तभी स्कूल के कुछ हलचल हो गयी और वो ये थी की उस विषमबाहू त्रिभुज का ट्रान्सफर किसी और स्कूल में हो गया.
अब हमारे स्कूल में गणित का कोई टीचर नहीं था सो हमें गणित के होमवर्क से छुटकारा मिल गया, 
 उस हेमंत हाथी की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था,
बहुत  टाइम बाद उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, लेकिन पढ़ाकू प्राणियों के मुह तो सूखे नारियल जैसे हो गये थे, सबसे होशियार जीव चाँद मोहम्मद की शकल तो कृष्ण पक्ष की पंचम के चाँद  जैसी हो गयी|

लेकिन कुछ दिन ही बीते थे की स्कूल को फिर से गणित का टीचर मिल गया

सबको यही उम्मीद थी की नये गुरु जी विषमबाहू से तो अच्छे ही होंगे

इसी उम्मीद के साथ उनका बहुत गरमजोशी से स्वागत हुआ, पुरे स्कूल को यही उम्मीद थी इनसे की ये बहुत शानदार रिजल्ट देंगे

लेकिन हुआ सब उम्मीदों के विपरीत|

मैंने अपनी लाइफ में अलग-अलग तरह के टीचर देखे थे कोई प्यार से पढ़ता था तो कोई थोड़ा   सख्त होकर, लेकिन  पढाई सब करवाते थे
परन्तु ये जनाब तो कुछ अजीब ही निकले, गणित जैसा सब्जेक्ट ये सिर्फ डंडे के बल पर पढ़ाने में विश्वास करते थे, अब मेरे जैसे विद्यार्थी का क्या हाल होता जिसका जोड़, बाकि, गुणा तक तो  मामला ठीक होता लेकिन भाग में जाते ही दिमाग में ज्वालामुखी फटने लगता|

किसी को कितना समझ में आया या नहीं ये बात अलग थी, होमवर्क तो उनको एकदम तैयार ही चाहिए था|
क्लास का माहौल  बिलकुल बदल गया, अध्यापक-विद्यार्थी के बीच हंसी-मजाक में पढाई की बजाय अब सब सीरियस हो गये|

हमेशा की तरह सन्डे की छुटी के बाद आज सोमवार आ ही गया.. अब सोमवार अपने साथ एक अदृश्य दैत्य को लेकर आता था.
गुरु जी का खौफ इतना था की किसी ने उनका लोकल नाम ही नहीं रखा, वरना कौन ऐसा  टीचर था जिसका कोई  दूसरा नाम न हो, जो उसको छोड़कर सबको मालूम होता|

हेमंत अपनी नोट बुक लाओ.

सुना नहीं क्या... ?

3 बार कहने के बाद हेमंत अपनी नोटबुक निकालकर अपनी ही जगह पर खड़ा हुआ|

जब पहले हेमंत इस तरह से धीरे-धीरे खड़ा होकर, दुल्हे की तरह कदम रखता तो पूरी क्लास के लिए ये लाइव कॉमेडी होता  लेकिन अब सब शांत थे|
आज हेमंत भी बहुत गंभीर मुद्रा में था. वरना एक छुपी हुई मुस्कान हमेशा उसके चेहरे पर रहती थी|

हेमंत ने 2 कदम आगे रखे थे तब तक गुरु जी खुद उस तक पहुच चुके थे .. कुछ और न बोले बल्कि जितना हो सकता था उतनी ताकत से उसको डंडे से मार  डाला.

हेमंत धडाम से गिर पड़ा|

जिन्दी में पहली बार मेरा कलेगा डर और करुना से रो उठा.
मैंने भी खूब डंडे खाए, और दोस्तों को खाते भी देखा, लेकिन ये इस तरह ??

हेमंत खड़ा हुआ तो उसके हाथ से नोटबुक लेकर देखा तो गुरु जी की आँखे ऐसी हुई की अगर उनके बीच में  नाक नहीं होती तो दोनों आपमें टकराकर वही आत्महत्या कर लेती.

ये क्या लास्ट 2 महीनो से कुछ किया ही नहीं|

पहले का काम भी बाकि पड़ा था|
मुझे अपनी गलती का अब अहसास हुआ काश में उस दिन उसकी मजाक नहीं उडाता|

गुरु जी एक-एक पन्ना देखते जा रहे थे और साथ में डंडे से उसे मारते जा रहे थे.
किसी की हिम्मत नहीं थी की कोई उसे बचा ले,

उस दिन क्लास में मातम छा गया था. संवेदना और दया की आँखों के सामने हत्या होती देखी थी पूरी क्लास ने, और शायद ही कोई भूल पायेगा अपनी जिन्दगी में|

स्कूल की छुटी हो गयी. में बाहर खड़ा हेमंत का इंतजार करने लगा, वो आया और मेरी आँखों के सामने से निकल गया, में बस उसे देखा रहा, खुद को कोसता रहा काश उस दिन उसका होमवर्क पूरा करवा देता.

वो अपनी बस में बैठ चूका था|

शाम हो गई , मैंने हिम्मत की और हेमंत के घर जा पंहुचा|

ये क्या ??

हेमंत खेल रहा हैं.. उसको कोई फ़िक्र ही नहीं. मैने सोचा वो आज अपना काम करता होगा

लेकिन यहाँ तो कहानी ही अलग थी, हेमंत की माँ ने बताया ये हमेशा ऐसे ही करता हैं, डॉ. ने बताया की इसको कुछ ज्यादा याद नहीं रहता हैं.

अब तो मैं और परेशान हो गया... सोचने लगा क्या अब आगे भी इस तरह ही रहेगा हेमंत?? क्या रोज-रोज  मार खानी पड़ेगी उसे?

उस दिन तो मैं वापस घर चला गया था लेकिन रात भर सो नहीं पाया. मुझे हेमंत की प्रॉब्लम सताए जा रही थी.
सोच रहा था मैं ही कर दू उसका होमवर्क लेकिन कैसे? आज तक मैंने खुद अपना होम वर्क कभी पूरा नहीं किया था | रात भर सोचने के बाद मेरे शैतानी दिमाग में एक उपाय सूझ ही गया.मैंने तय कर लिया की हेमंत केवल गणित का होमवर्क ही करेगा|हेमंत ने ऐसा ही किया

लेकिन दूसरी समस्या ने उसका पीछा कर लिया. और ये पहली से ज्यादा खतरनाक थी, गणित के गुरु जी की नजरों में हेमंत अब एक निठल्ला विद्यार्थी था. हर एक कमजोर विद्यार्थी पर उसका ही उदहारण दिया जाने लगा.
गुरु जी का ये तरीका हेमंत को अन्दर ही अन्दर कमजोर कर रहा था.
एक अध्यापक जिसको सरकारी सिस्टम में सबसे ज्यादा इज्जत मिलती हैं वो एक भोले-भाले और नादान बच्चे के करियर और जिन्दगी के भविष्य की इज्जत लूट रहा था लेकिन कौन था जो उसे रोक ले!!

कभी-कभी जिन्दगी में एकाएक कुछ ऐसी घटना होती हैं की  एक अजनबी जिससे हमारा कोई वास्ता नहीं होता वो अचानक से हमारी जिन्दगी का हिस्सा बन जाता हैं|
कुछ ऐसे ही हेमंत मेरी जिन्दगी का हिस्सा बन गया था
अब मैं ये जान चूका था की परीक्षा में हेमंत मेरे ठीक आगे  ही बैठेगा|

और मेरा मिशन था हेमंत को गणित की परीक्षा में पास करवाना. मैं जानता था नक़ल करवाना और करना सब गलत हैं. लेकिन सच कहू न तो मेरी लड़ाई परीक्षा से नहीं उस कर्तव्य विमुख टीचर से थी.

स्कूल की छुटी  होते ही मैं हेमंत के घर चला जाता और उसके गणित का होमवर्क पूरा करवा देता|

अर्द्ध-वार्षिक परीक्षा बिलकुल नजदीक थी अत: हम सब पढाई में लग गये,  कोशिश कर रहा था की हेमंत भी कम से कम पासिंग मार्क्स तो ले ही आये,

लेकिन मैं जितनी कोशिश करता हेमंत उतना ही कम पढाई करता, ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसके साथ बरदस्ती कर रहा हूँ|
अर्धवार्षिक परीक्षा भी आ गई, मुझे अपने परसेंटेज की कोई चिंता नहीं थी, बस हेमंत को पास करवाना था|
***

चिंता कीचड़ की तरह है जो इन्सान को अपनी और खींचती ही जाती हैं,  जिस हेमंत को कोई भी कुछ भी बोल देता,फिर भी उसके   चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहाट ही देखने को मिलती वो अब एक बुझे दीपक की तरह लगने लगा|

गुरु जी द्वारा बार-बार टोकने और  हतोत्साहित करने के कारण वह अब निराशा और हताश हो चूका था| 

अर्धवार्षिक परीक्षा के मार्क्स सुना दिए गये, बस पास हुआ था वो उसमे भी गुरु जी की नींद हराम हो गयी, आखिर क्यों?

क्या दुश्मनी थी उसकी, क्या वो अपना स्वभाव नहीं बदल सकते थे, क्या शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांत ही उनके वसूलों के खिलाफ थे, या फिर वो इन सिद्धांतों को पढ़कर ही नहीं आये, बाल  मनोविज्ञान का तो कोई अस्तित्व ही नहीं था उनकी दुनिया में|

अर्धवार्षिक परीक्षा के मार्क्स ने गुरु जी की हकीकत को सामने रख दिया, मजाल था  कोई 50 से ज्यादा नंबर ले आये| 

ज्ञान था लेकिन रटा रटाया .. पढ़ाना कैसे हैं ये उनको नहीं मालूम था, डंडे के बल पर उन्होंने  जो माहौल बनाया उसने सब बच्चों में डर बैठा दिया, किसी की दिलचस्पी ही नही रही उनसे पढने की और इसी का परिणाम था ये  रिजल्ट.

समय अपने अदृश्य पंखो से उड़ता चला गया और वार्षिक परीक्षा भी नजदीक आ गयी,

जैसे-तेसे करके मैं हेमंत का गणित का होमवर्क तो पूरा करवाता रहा लेकिन उसने कितना पढ़ा ये मुझे मालूम ही था, अपने दम पर वो शायद ही पास हो सकता था|

दुनिया में हर एक इन्सान में एक अद्वितीय प्रतिभा होती हैं लेकिन बहुत  कम होते हैं खुशकिस्मत जिनकी वो प्रतिभा दुनिया के सामने आ पाती हैं, हेमंत जैसे बच्चों के लिए तो बहुत ही मुश्किल, इतना सुडोल और मदमस्त शरीर, देखने पर किसी पहलवान से कम नहीं लगता था वो, शायद जरुरत थी तो सही तरीके से गाइड करने की, किताबी ज्ञान से परे भी बहुत था उसके लिए करने को इस दुनिया में|

लेकिन जिस के भरोसे उसके नाव रुपी जीवन की बागडोर थी वो खुद ही उसमे छेद कर रहा था तो भला कैसे पार हो शक्ति थी  उसकी नैया|


10 दिन बाद परीक्षा शुरू होने जा रही थी और अब स्कूल से हमे छुट्टियाँ मिल चुकी थी|
***

ये 10 दिन कब निकल गये पता ही नही चला और आज हम सब आ बैठे परीक्षा रूम में, सब को  उत्तर-पुस्तिका दे दी गयी, और कुछ ही मिनट बाद हमारे हाथ में पेपर आ गया, 
 लेकिन ये क्या मेरे आगे वाली कुर्सी अभी तक खाली थी, क्या हो गया ? हेमंत क्यों नहीं आया? शायद 5 मिनट में आ जायेगा.. शायद बस छुट गयी होगी? 

तरह-तरह मनौपज प्रश्नों के जवाब देते देते 10 मिनट हो गये. और मेरा मन बुझता रहा,, बेमन से हाथ खाली पेपर पर खानापूर्ति कर रहा था..
जिस विषय को मैंने जिसके लिए इतना तैयार किया वो आज खुद नहीं आया. वरना इन प्रतिशत के भूत को तो  मैं कब का भगा चूका था|

समय पूरा हो गया, हमसे उत्तर-पुस्तिका  ले लि गयी. 

मैंने अपनी साइकिल को फिर से रोकेट बनाई और सीधा लौंच कर दिया हेमंत के घर की और|

हेमंत की मम्मी अपने काम में बिजी थी, उन्होंने मेरी और ध्यान ही नही दिया. फिर मैंने इधर-उधर तांका. लेकिन कोई और नहीं  दिखाई दे रहा था|

मेरा कलेजा और धक-धक करने लगा

मैंने हिम्मत करके हेमंत की मम्मी से पूछ ही लिया,
मम्मी जी हेमंत....?


मैंने अपना प्रश्न पूरी नहीं किया उससे पहले ही सामने से जवाब आ गया 

7 दिन हो गये हैं उसको बाहर गये हुए, कुछ नही सिखा पुरे साल, खुद ही बोल रहा था की वो पास नही होने वाला इस बार|


मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी... शरीर कंपकंपा उठा|

फिर अपने को संभाला और वापस साइकिल पर बैठा और अपने रास्ते निकल कर कुछ दूर एक पेड़ की छाया में बैठ गया.

 वो हिम्मत हर गया था...... नहीं नहीं उसे हरा दिया गया था. 
मैं  खुद की नजरों में गिर गया. आखिर क्यों मैंने उसकी सहायत नही की जब उसने खुद मुझसे मांगी.. और जो चीज उसने मांगी ही नहीं वो मैं करने बैठ गया, 

मेरा वो बचपन था गलत और सही को मैं ज्यादा जस्टिफाई नहीं कर सकता था लेकिन वो गुरु जी जिन्होंने
जिन्दगी के काफी दशक देख लिए थे, अन्याय तो उन्होंने किया|

एक हेमंत जिसमे कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत थी, बस जरुरत थी तो उसे थोड़ा- सा मोटीवेट करने की लेकिन अपनी झूठी शान के लिए अड़े रहे और उसकी हिम्मत और मनोकामनाओ को मार डाला.



ज्यादा टाइम नही रुक पाए थे वो गुरु जी मेरी स्कूल में, दुसरे ही साल उनके ट्रान्सफर का आर्डर आ गया, उनका विदाई समारोह रखा गया.

यद्यपि मैंने आज तक मंच पर जाकर कभी कुछ नही बोला था लेकिन इस बार मैंने हिम्मत कर लि थी
और 2 लाइन बोल डाली गुरु की बारे में.

कौन-सी कर्ज अदा की आपने
जो बिन बुलाये वसूली करने आ चले
बहुत लम्बा सफ़र अभी और बाकि हैं आपका   
रखो  निरर्थक दर्प को दूर
अभी जलाने वो बुझते चिराग बाकि हैं

लेखक :- हीरा लाल भारतीय



































इंसानी कोबरा




इस वर्ष की पहली ही बारिश ने इस सूखे रेगिस्तान को ऐसा तरबतर किया कि  छोटे-छोटे रेत के टिल्लों के चारों और पानी ही पानी हो गया और वो सूखे टापू बन गये. 
हवा जरुर ठंडी हो गयी थी लेकिन पूरे गर्मी के मौसम में रेगिस्तानी धरा इतनी गर्म हो गयी थी की अभी भी धरातल से गर्मी  महसूस हो रही थी .



पृथ्वी के ऊपर रहने वाले जीव जंतुओं के लिए ये धरा मानो  स्वर्ग बन गयी हो लेकिन धरातल के नीचे रहने  वालें जीवों के लिए एक क़यामत आ जाती हैं और वो जमीन से बाहर निकल आते हैं .



यही सोचकर सनाया की अम्मी ने आवाज लगाई ..
सनाया ...! 
जी अम्मा ...!
आज घर की छत पर ही सोना , मौसम बहुत सुहावना हैं, साथ ही जमीन से कोबरा भी निकल सकता हैं . 
इतना क्यों डरती हो अम्मा .. मैंने पहले से ही 2-4 लाठियां तैयार रखी हैं आते ही उसे धमका दूंगी . 

सनाया के बापू की मौत कोबरा के काटने से हुई थी ये सब जानते थे .. लेकिन एक और बात थी जो सब गाँव वाले तो जानते थे लेकिन नहीं जानती थी तो वह एकमात्र इन्सान थी सनाया|

सनाया का पिता के प्रति अटूट प्रेम 

किसी भी समाज में चाहे कितनी भी सामाजिक रूढ़ियाँ , अशिक्षा मौजुद हो लेकिन वहां भी एक  पिता का अपनी बेटी और बेटी का अपने पिता के प्रति अटूट प्रेम होता हैं 
ये बात अलग थी की इस बेटी ने अपनी आँखों से कभी अपने पिता को नही देखा था, क्या फर्क पड़ता हैं इन बातों का, भावनाएं किसी डोर से बंदी नही होती  जो जरा-सी मुसीबत आये और टूट जाये.
जब बात अपनों की हो तो  हर पल दिल में होती हैं ये भावनाएं.

सनाया बचपन से बहुत बहादुर  लड़की थी,  घर में माँ और उसके सिवाय था ही नही दूसरा कोई जिससे वो अपनी रक्षा की उम्मीद कर सके|
 इसी अकेलेपन ने उसे मौका दिया एक निडर योध्दा बनाने का.

समाज और गाँव के हर एक काम में वह भाग लेने लगी. अपने जैसी बालिकाए जो न तो स्कूल जा पाती और न ही उन्हें  घर से बाहर निकलने दिया जाता था उनके लिए मसीहा बनाने की ठान ली  थी उसने.

ये बड़ी अजीब और निराश करने वाली बात हैं की जब इसी छोटी-छोटी जगहों से कोई इन्सान कुछ नया  करने की ठानता हैं तो  पहला विरोध उसके घर परिवार से ही होता हैं खासकर बात जब अंधविश्वास और गलत परम्पराओं के विरोध करने की हो.

खुद अपना वजूद देखो सनाया... निकल पड़ी हो समाज सुधारने को .!!
 मेरा वजूद में ही हूँ जनाब...  आप बस अपनी लाली को लगाम दो.

गाँव के इस अधेड आदमी को एक टुक जवाब देकर वह  आगे बढ़ गई ....
लेकिन इस निडर बाला को अभी बहुत कुछ जानना था इस दुनिया के बारे में.

एक शाम वह पानी लेने  के लिए जा रही थी की वहां उसे गाँव का ही भीखू बुखारी मिल गया, और बोलने लगा
अच्छा तो यह हैं समाज-सुधारक??
खुद का पता नही और उपदेश..

हाँ तो क्या ग़लत हैं इसमें चाचा..?

गलत कुछ नही.... लेकिन आज तक कुछ सही भी  नही हुआ... यहाँ तक की तुम्हारा जन्म भी.

सनाया कुछ समझ नही पाई.  कुछ देर उसकी और देखती ही रह गई..
क्या घूर-घूर  के देख रही हैं .. जाकर पूछ अपनी माँ से.. क्या अखनूर ही तेरा बाप था या कोई ........

भीखू आगे कुछ बोलता उससे पहले ही सनाया ने पानी से भरा घड़ा उसके मुह पर दे मारा और भाग गयी अपने घर की ओर..

पीछे से भीखू जोर से आवाज लगता हैं..
तस्कर, चोर, औरतों और लड़कियों को बेचने वाले की औलाद भी आखिर .....

सनाया के कदम रुक गये तो उधर भीखू की आवाज भी रुक गयी आखिर पानी के घड़े की लगी चोट का दर्द अभी जिन्दा जो  था.

"तस्कर, चोर, औरतों और लड़कियों को बेचने वाला " बस यही शब्द बार बार गूंजने लगे इस कन्या के कानों में .

सनाया का पिता से नफरत हो जाना 



क्या हुआ बेटा.. ?
आँखों में गुस्सा,  चेहरे पर  हताशा का भाव एक अजीब-सा  मनोभाव दिखा रहा था इस समय सनाया के चेहरे पर|
माँ समझ चुकी थी इस मनोभाव को, जरुर किसी ने अनचाहे और कठोर सत्य से रूबरु करवाया हैं इसे.

इतना बड़ा झूठ...?
या सच बोलने से डर लगता था आपको?

ऐसा कुछ नहीं हैं.... क्या हुआ ये तो बताओ
जिस पिता को लेकर मैं इतनी गौरवान्वित थी... सोचती थी बहुत बड़े इन्सान होंगे वो?  शायद लोग इसीलिए ज्यादा नहीं बोलते उनके बारे में.

माँ निशब्द थी इस समय|

हाँ बेटा कुछ बातें ऐसी होती हैं जिसके बारे में जितनी कम सच्चाई जानोगे उतना ही अच्छा होता हैं,
उनकी सच्चाई जानना अपनों के प्रति नफरत पैदा करने से ज्यादा कुछ नहीं  होता।

ऐसा आपका मानना हैं अम्मा।

आज भीखू बोल रहा था की मैं एक तस्कर, चोर, औरतों और बच्चियों को..

गला भर आया था उसका,
 कितना भी मजबूत क्यों न हो कोई इन्सान, माँ के सामने पिघल ही जाता हैं|
आँखों मैं आंसू लिए सनाया इस क्षण अपनी माँ के आँचल में थी.

कुछ भी हो अम्मा मुझे पूरी सच्चाई जाननी हैं.

अब माँ के पास अपने काले अतीत को बताने के सिवाय कोई चारा नही था।

रात सामने थी, पूरा आसमां तारों से सजा हुआ था, घर के बाहर चारपाई पर माँ बैठी थी और सनाया  उसकी गोद में सोती-सोती सुनने लगी अपने ही बाप के बुरे कारनामे।

प्रतीकात्मक चित्र 

आज से 18 वर्ष पहले मुझे कोडियों के भाव खरीद कर लाया था अखनूर,
 कितनी भी गरीबी क्यों नहीं हो कोई अपनी बेटी को बेचने की बात सोच भी नहीं सकता, लेकिन उन्होंने हकीकत में ऐसा कर भी दिया था.
नियति ने जो लिखा था मेरी किस्मत में वो हो गया.
अखनूर मादक पदार्थों की तस्करी  कर खूब पैसा कमाता था, लेकिन कभी मुझे अपनी पत्नी की नजरों से  नही देखा था.
में थी तो सिर्फ एक खरीदी हुई वस्तु, कई बार कोशिश की थी मैंने भाग जाने की लेकिन कोई रास्ता भी तो नहीं था.

इस छोटे से घर  में हर दिन बड़े-बड़े तस्कर आते थे.

मुझे अपने घर से तो किसी के आने की उम्मीद भी नही थी, लेकिन यहाँ कोई पड़ौसी भी सामने तक नही देखता था|
एक बार अखनूर पुलिस के हाथो धरा गया तो उसके सब साथी तस्कर भाग गये, करोड़ों का माल हाथ से चला गया तो उसके साथियों ने उसे टॉर्चर करना शुरू कर दिया
कैसे भी करके उनको रूपयें चाहिए थे.
जब उसके पास कुछ नहीं बचा तो उसने भीखू से दोस्ती की और उनके पैसे चूका दिये।

इसके बाद उसने तस्करी का धंधा छोड़कर लड़कियों को बेचने का काला धंधा शुरू कर दिया|
अनीति का विनाश जरुर होता हैं. अधर्म और बेईमानी की नींव  पर खडी की गयी  दीवारें ज्यादा महफूज नहीं होती, हल्का-सा तूफ़ान आया नही की वे  हिलने लगती हैं |

अखनूर के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाल था.

अखनूर फिर से पुलिस के हत्थे चढ़ गया लेकिन फिर से पैसे देकर छुट गया.
अब वह भीखू का कर्जदार बन गया था.

इसलिए  अब उसने आसपास के इलाके के लोगो को ही  डरा-धमकाकर लूट-पाट करने शुरू कर दिया,  जिससे लोगो में जो पहले से ही उसका डर था अब वह आतंक में बदल गया. शाम होते ही लोग अपने-अपने घरों में दुबक जाते जैसे शोले के गब्बर से डरकर रामपुर वाले दुबकते थे.

शाम को अखनूर घर पर आता तो उसके साथ उसके 2-4 साथी तो  जरुर होते..
जैसे-जैसे उसकी तंगहाली ज्यादा होने लगी मुझे ज्यादा डर लगने लगा.

मैंने कुछ कम करने की ठान ली, लेकिन मुझे कोई भी काम नहीं मिलने वाला था कारण  था अखनूर,
                                                             कौन इतनी रिस्क लेता!

लेकिन मेरा दिन-भर घर में अकेले रहना भी महफूज नहीं था अब,   मेरा घर से बाहर निकलना जरूरी था|

औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर 
जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे 
                                                 - फ़रहत एहसास

एक शाम, मैं घर में खाना  बनाने की तैयारी कर रही थी तभी अखनूर अपने 3 दोस्तों के साथ घर आया,
वैसे वो हमेशा देर रात में ही आता था लेकिन उस दिन वो दिन रहते ही आ गया वो भी 3 दोस्तों के साथ.

मुझे लग गया कि  आज मेरे साथ कुछ गलत होने वाला था लेकिन में बेबस थी बस सोचने भर के लिए,  कुछ नहीं कर सकती थी|
उन 3 दोस्तों में भीखू भी साथ था .

अभी सूर्यास्त में  टाइम था  तो  अखनूर मुझे सभी के लिए खाना बनाने का बोलकर जंगल में चला गया|

जंगल में जाकर सभी ने जमकर शराब पी, शराब पीते-पीते ही वहां मेरा  मोल-भाव हो गया था|

अब वहां इंसानों की जगह 4 शैतान बैठे थे.

लेकिन हर बार ऐसा  भी नहीं होता की नियति हमारा साथ न दे|
  वो जैसे ही घर की ओर आने लगे की रास्तें में अखनूर को एक काले सांप कोबरा ने काट लिया और उसकी वहीं मौत हो गयी.

अखनूर के मरने के 2 महीने बाद तेरा जन्म हुआ था.

लेकिन इस परिस्थिति में लोग  क्या-क्या बातें बनाने लगे ये जगजाहिर हैं.

अखनूर से मेरा पीछा जरुर छुट गया था लेकिन दूसरे  शैतान भीखू से हर रोज लड़ना था मुझे.

माँ अपनी बातें  कहती रही और सनाया की आँखे आसुओं में डूबी रही.... अब आगे नहीं सुनना चाहती थी सनाया..
मुझे नहीं मालूम इस समय उन दोनों में से किसी को नींद आई या नहीं,  लेकिन अपने पाठकों को इतना जरुर बताना चाहताहूँ  की इतना सुनने और जानने के बाद एक बेटी जिसने अपने बाप को  देखा तक नहीं,  उसकी दुश्मन बन चुकी थी.

अबला बनी सबला
अब सनाया कोई मौका नहीं गंवाना चाहती थी कि  उसकी भीखू  से कोई तकरार न हो. जहाँ भी उसे वो मिलता वो उसे कुछ न कुछ जरुर बोल देती, वो चाहती थी कि  भीखू से दो-दो हाथ हो|

सरे आम लोगो के सामने उसने भीखू को उसकी हकीकत बतानी शुरू कर दी.
जब भीखू को लगने लगा की ये उसके लिए खतरा बन सकती हैं तो उसमे छिपा शैतान सामने आने लगा|

बड़ी अजीब विडम्बना हैं ये कि जब किसी गलत आदमी या काम के प्रति लड़ना हो या उसका विरोध करना हो तो लोग एक-साथ बड़ी मुश्किल से आते हैं, वही जब किसी को बदनाम करना हो या फालतू दंगे फसाद करने हो मूर्खो की गेंग बनने में  देर नही लगती|

यही भीखू ने किया..

10-12 गुर्गे ले लिए साथ और धमकाने लगा दोनों माँ बेटी को  .
ये सच ही कहा की "विनाश काले विपरीत बुध्दि " अब कुछ भी हो सकता था उसके साथ|
 इन्सान का दिमाग जब शैतान बन जाता हैं तो उसे सब -कुछ जो वह सोचता हैं सही ही लगता हैं.

शाम का समय आते ही सूरज पश्चिम की और चला गया, रेगिस्तान में जानवर अपने घरों की और लौट रहे थे जिससे उसके पैरों से उड़ी धुल  पर सूरज की रौशनी पड़ने लगी तो एक मनोरम द्रश्य बन गया ... इसी समय दोनों माँ बेटी अपने घर जा रही थी की रास्ते में उसे भीखू मिल गया|

उसने दोनों का रास्ता रोक लिया  और सनाया की अम्मा से बदतमीजी करने लगा, सनाया ने उसे धक्का मार कर नीचे गिरा दिया,
लेकिन उसकी माँ ने उसे पकड़ लिया और खींचकर अलग कर दिया और उसे लेकर घर की और भागने लगी. उसके लिए ये पहली  बार नही था.

भीखू पीछे से आवाज लगता हैं तेरे बाप की हिम्मत नहीं हुई कभी मुझसे ऊचे स्वर में बात करने की भी और ये नारी, औरत, मुझे ललकार रही हैं .
जाते-जाते सनाया ने भी उसे ललकार दिया :-
"ना मैं अबला ना बेचारी ना मैं अधीर हूँ
बस अधीन हूं  इंतजार में  वक्त के थोड़ी-सी.
बन के शक्ति आज मैं तेरे काल के लिए  लवलीन हूँ. "
तेरी मौत बनकर आ रही  हूँ .... 

 वो दोनों घर पहुची तब तक एक भीड़ भी उसके घर की तरफ आ रही थी .

कुछ ही समय में अखनूर और बहुत सारे बदमाश उसके घर  आ धमके. 

सनाया की माँ को खीचकर बाहर ले आया और बोलने लगा .
जब जरुरत पड़ी तो  मैंने अपनी सम्पति दे दी थी इसके बाप को और आज यही मुझे जान  से मारने की धमकी दे रही है. 
देखो देखो ??
 वह सभी की झूठी सहानुभूति प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था. 
आसपास खड़े लोग बस देख रहे थे ये नजारा. 

कोई कुछ न बोल रहा था|

अब सनाया कुछ भी नही सहन करने वाली थी... 
चारों और नकारात्मक शैतानी चेहरे थे वहां पर .. लेकिन एक शक्ति-स्वरुप देवी आ चुकी थी वहां ... इस दैत्य को कुचलने के लिए. 

भीखू  ने सनाया की माँ को धक्का मारकर जमीन पर गिरा दिया... 

उधर सनाया ने घर में रखा एक खंजर उठा लिया जिससे उसका बाप अखनूर लोगो को डराता था , 
और बढ़ चली उस दैत्य की ओर  जो सबके सामने उसकी माँ की इज्जत लूटने को आतूर था|

 जिस नारी को सिर्फ कथनों में ही शक्ति बोलते या कहते सुना था वो हकीकत में वहां आ चुकी थी|
सनाया ने खंजर उठाकर जोर से दे मारा भीखू के सिर पर और वो धड़ाम से जमीं पर गिर पड़ा| 

उसने पलटकर देखा तो  सामने शक्ति-स्वरुप विकराल रूप में हाथ में खंजर लिए खड़ी थी सनाया.. जुबान बंद हो गयी थी उस दैत्य की जो खून पीने  की बातें किया करता था .

आस-पास खड़े कायर जीव तो इस तूफ़ान में कब उड़े  उनको ख़ुद को भी नहीं मालूम चला  था, कुछ तो वही पर जमींदोज हो गये थे केवल  उस विकराल रूप को देखने भर से|

डर और निडरता में, बस एक पल और एक कदम का ही अंतर होता हैं|
 सनाया ने पिछले ही पल एक कदम उठाया निडरता के साथ की भय भाग चूका था उन कायरों के साथ,  जो पिछले पल तक डराने के लिए आये थे. 

माँ एक और खड़ी थी .... 

वो जीवन दान मांगता उससे पहले ही  एक और वार हो चूका थे उसके सीने में खंजर का... .. 
अखनूर ने जो खंजर लोगो के डराने के लिए रखा था उसी से उसकी बेटी ने डर को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया.. 


माँ लिपट गयी  उस बेटी से जो शक्ति स्वरुप पैदा हुईं थी उसी की कोख से.. 
आज की शाम बुराई के खात्मे के साथ ही ख़त्म हुई,  कल की सुनहरी  सुबह कैसी होगी ये पाठक स्वयं  समझ गये हैं 


लेखक : हीरा लाल भारतीय 










जिदंगी की सेल्फि खुद के साथ|

रात के 11 बज रहे थे, मैं अभी भी छत पर खड़ा पूर्णत निराश, हतास, शिथिल शरीर व नम आँखों से चाँद को  देख
रहा था जो असंख्य तारों की बिना परवाह किये विशालकाय बादलों सका चीरते हुआ तेजी से आगे बढ़ रहा था.
लेकिन मैं आज रुक गया था| कम्पनी में जॉब इसलिए नहीं मली क्यूंकि मेरे पास डिग्री तो थी लेकिन उसमे मार्क्स नहीं थे| वो लोग सवाल पूछते गये और मैं आँखों के विपरीत सर हिलाता गया 

बिल्डिंग की 10वी मंजिल से रोड पर चलती गाड़ियाँ भी अब धुंधली दिखाई दे रही थी, मन में हजारों विचार इस समय चल रहे थे, इतने जटिल और अनसुलझे की कोई सैकोलोजीस्ट मेरे पास बैठकर केवल कुछ ही घंटो में कोई नया रिसर्च करके पी.एच्.डी. कर सकता था.

कई सारे तारे टूट रहे थे लेकिन अब मैं कोई विश नही मांग रह था.

अपने रूम में गया  और बैग उठाया, पानी की एक बोतल बैग में रखी और दूसरी हाथ में ली, फ्लेट को लॉक करके निकल पड़ा एक अनजानी राह पर न तो जाने का कोई ठिकाना था न ही कोई कारण, बस चलता रहा चलता रहा. 

कॉलेज के 5 सालों में जिन महंगी-महंगी लग्जरी गाड़ियों में ही सफ़र किया वो उतना तेज नहीं था तेज आ मेरे कदम थे. 

आज पहली बार मैं खुद से बातें कर रहा था, खुद को गलियां दे रहा था, खुद से प्रश्न कर रहा था और खुद ही उनका जवाब दे रहा था. मैं कोशिश कर रहा था इस समय के चक्र को रोकने की, लेकिन मेरे क़दमों ने जो गति पकड़ी थी उसके आगे यह असंभव था, बिलकुल असंभव|

प्रकृति का एक खुबसूरत सितारा पश्चिम की ओर अद्रश्य हो रहा था टो दूसरी ओर पूर्वांचल में दूसरा इससे भी खुबसूरत सितारा उदयमान हो रहा था|

चलते चलते लगभग 6 घंटे हो गये थे, शरीर पसीने से लतपथ था, इतनी बातें अपने आप से की की रास्ते में अगर इ भूत भी हमराही बना होगा तो वह भी डरकर वापस अपनी राह  पर चला गया होगा|
मैं शहर से काफी दूर चला आया था| 

चारो और खेत ही खेत नजर आ रहे थे| खेतों के चारों ओर कंटीले तारो की बाडबंदी (fence)  तो की हुई थी लेकिन की इन्सान नजर नही आ रहा था|
पुराने वृक्षों पर जरुर हरे पत्ते थे लेकिन छोटे छोटे पौधे और झाड़ियाँ अपने को धरातल पर समर्पित कर चुकी थी|

बचपन में पढ़ी कहानियों ने याद दिलाया की यह किसी भीषण आकाल का दृश्य हैं|
मैंने सूर्य की और देखा, पहली बार नमस्कार करने को दोनों हाथ खुद-ब-खुद जुड़ गये, थोरी ही दुरी पर एक तालाब नजर आया, मैं उत्साहित होकर उस तालाब की पाल पर जा पंहुचा|

यह क्या? 

मेरे कदम वहीं रुक गये, मरे हुए जानवरों के कंकाल ही कंकाल, पुराने खंडर और उनके ऊपर उड़ते काले काले कौवे और डराने गीद्ध.....
    दोस्तों के साथ देखी होरर फिल्मों के जैसे सीन आज हकीकत में मेरे सामने थे|


मन में डर था, लेकिन जिज्ञाषा और उत्सुकता ने मुझे और आगे बढ़ा दिया|

मैं तालाब के बीचों-बीच  था, तली की मिटटी पानी के अभाव में फट चुकी थी|

अचानक मेरी नजर उ तीन पौधों पर पड़ी जो बिलकुल हरे-भरे थे| मैं 2 कदम पीछे हटा तो अचानक मेरा पैर ठहर गया जैसे मैंने किसी मासूम से जीव पर पैर रख दिया हो.


पीछे मुड़कर देखा टो एक और उनके जैसा ही खुबसूरत पौधा जो मेरे पैर से थोरा-सा कुचल गया था,  मैं वहीँ पर बैठ गया और एक छोटे बच्चे क तरह वापस उसकी पत्तियों को खड़ा करके उसमे अपनी बोतल से पानी देने लगा| 
हृदय से ईएसआई भावनाएं निकल रही थी मानो मौत से लड़ते किसी पक्षी को जखम देकर उस पर मरहम लगा रहा हूँ|
चारों पौधें हवा के चलने के साथ फटी व सुखी जमीन की बिना परवाह किये लहलाने लगे| 
मैंने अपना मोबाइल निकाला और उन पौधों के साथ एक सेल्फी ले लि| यह सेल्फी मेरी फेसबुक वाल के लिए नही थी बल्कि मेरी जिन्दगी की किताब का मुखप्रष्ठ बनने जा रही थी|
इन पौधों को खुद की काबिलियत पर भरोसा था, फटी व सूखी जमीन के नीचे दबी नमी को सोखने का जज्बा था इनमे, इसी जज्बे ओ उम्मीद से लह लहा रहे थे की आने वाली सांझ या सवेरे बारिश जरुर होगी|

एक कंपनी ने मुझे जॉब देने से क्या मना कर दिया मैं निराशा के गर्त में चला गया....... हाय धिक्कार हैं मुझे , बहुत कायरता भरा निर्णय|

शहर पीछे छुट गया, वापस जाने का मन तो बिलकुल नही था, मैं सड़क किनारे जा पंहुचा| पहली ही बस में बिना गंतव्य बताये बैठ गया| दुसरे दिन सुबह तक में अपने गाँव जा पंहुचा था|
सीधे अपे पुराने घर चला गया जहाँ मेरे दादा -दादी रहते थे, उनके पास थोडा समय गुजारा फिर नहा-धो कर खाना खाया और चला गया एक कमरे में|
लेपटोप निकला और पुराने मेल खोलकर तलाशने लगा अपनी जमीन को|

वो फर्स्ट इयर के सेंकडो प्रोजेक्ट जो बनाने तो सुरु किये थे लेकिन पूरा एक भी नही किया था|
लगभग 2 माह तक मैं आस-पास की सभी स्कूलों व अस्पतालों में जा जाकर आंकड़े एकत्रित करता रहा| शिक्षा व स्वास्थय के क्षेत्र में आज भी बहुत सारी समस्याए मौजूद थी| सरकार तक सही आंकड़े नहीं पहुच पाने के कारण को भी योजना प्रभावी रूप से काम नही कर पा रही थी|

कागज पर कोई कलम तो चलाना ही नही चाहता था, कौन घर-घर घुमे बस यही बहाना था सरकारी बाबुओं का|
अगले 2 माह में मैंने अपना सोफ्टवेयर तैयार कर लिया था अब न तो कागज की जरुरत थी और न ही कलम चलाने की|
ग्राम पंचायत स्वयं एक जगह बैठे-बैठे अब सर्वे कर सकती थी|
जिस काम में लाखो रूपये व बहुत सारा समय बर्बाद हो जाता था अब उसे बचाया जा सकता था|
मेरा सॉफ्टवेर राज्य सरकार तक पहुच चूका था| 
कुछ परीक्षणों के बाद सरकर ने इसे स्वीकार कर लिया|

समय और हालात इतने तेजी से बदलेंगे सोचा भी नही था, आज मैं राज्य सरकार का ब्रांड बन चूका था कई सारी कम्पनियों के ऑफर आने लागे लेकिन अब न तो इच्छा रही और न ही लालसा|

अब मुझे वो तमाम प्रोजेक्ट पुरे करने थे जो अधूरे पड़े थे, 
अब मुझे अटूट विश्वास था की मेरे सरे प्रोजेक्ट पुरे होते ही किसी कंपनी से कम नही होंगे मेरा कम ही मेरा बॉस होगा.... मैं हर एक प्रोजेक्ट के पुरे होते ही उस पर एक किताब जरुर लिखता हूँ क्योंकि एक इंजिनियर सर किताबें पढता ही नहीं बल्कि किताबें बुनता भी हैं. 

उगते सूर्य को साक्षी मानकर उन 4 पौधों के साथ ली गई सेल्फी मेरे जीवन की सेल्फी थी| 






अनुभव_तो_महान_होता_हैं

क्लास रूम में प्रोफेसर ने एक सीरियस टॉपिक पर चर्चा
प्रारंभ की।




जैसे ही वे ब्लैकबोर्ड पर कुछ लिखने के लिए पलटे तो तभी
एक शरारती छात्र ने सीटी बजाई।

प्रोफेसर ने पलटकर सारी क्लास को घूरते हुए "सीटी
किसने मारी" पूछा,
लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया।
प्रोफेसर ने शांति से अपना सामान समेटा और आज की
क्लास समाप्त बोलकर, बाहर की तरफ बढ़े।

स्टूडेंट्स खुश हो गए कि, चलो अब फ्री हैं।

अचानक प्रोफेसर रुके, वापस अपनी टेबल पर पहुँचे और
बोले---" चलो, मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ ,
इससे हमारे बचे हुए समय का उपयोग भी हो जाएगा। "

सभी स्टूडेंट्स उत्सुकता और इंटरेस्ट के साथ कहानी सुनने
लगे।

प्रोफेसर बोले---" कल रात मुझे नींद नहीं आ रही
थी तो मैंने सोचा कि, कार में पेट्रोल भरवाकर ले आता हूँ
जिससे सुबह मेरा समय बच जाएगा।

पेट्रोल पम्प से टैंक फुल कराकर मैं आधी रात को
सूनसान पड़ी सड़कों पर ड्राइव का आनंद लेने लगा।
.
अचानक एक चौराहे के कार्नर पर मुझे एक बहुत खूबसूरत
लड़की शानदार ड्रेस पहने हुए अकेली खड़ी नजर आई।

मैंने कार रोकी और उससे पूछा कि,
क्या मैं उसकी कोई सहायता कर सकता हूँ तो उसने कहा
कि,
उसे उसके घर ड्रॉप कर दें तो बड़ी मेहरबानी होगी।

मैंने सोचा नींद तो वैसे भी नहीं आ रही है ,
चलो, इसे इसके घर छोड़ देता हूँ।
.
वो मेरी बगल की सीट पर बैठी।
रास्ते में हमने बहुत बातें कीं।
वो बहुत इंटेलिजेंट थी, ढेरों
टॉपिक्स पर उसका कमाण्ड था।

जब कार उसके बताए एड्रेस पर पहुँची तो उतरने से
पहले वो बोली कि,
वो मेरे नेचर और व्यवहार से बेहद प्रभावित हुई है और
मुझसे प्यार करने लगी है।

मैं खुद भी उसे पसंद करने लगा था।
मैंने उसे बताया कि, " मैं यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हूँ। "
.
वो बहुत खुश हुई
फिर उसने मुझसे मेरा मोबाइल नंबर लिया और
अपना नंबर दिया।

अंत में उसने बताया की, उसका भाई भी
यूनिवर्सिटी में ही पढ़ता है और उसने मुझसे
रिक्वेस्ट की कि,
मैं उसके भाई का ख़याल रखूँ।

मैंने कहा कि, " तुम्हारे भाई के लिए कुछ भी करने पर
मुझे बेहद खुशी होगी।
क्या नाम है तुम्हारे भाई
का...?? "

इस पर लड़की ने कहा कि, " बिना नाम बताए भी
आप उसे पहचान सकते हैं क्योंकि वो सीटी बहुत
ज्यादा और बहुत बढ़िया बजाता है। " 

जैसे ही प्रोफेसर ने सीटी वाली बात की तो,
तुरंत क्लास के सभी स्टूडेंट्स उस छात्र की तरफ
देखने लगे, जिसने प्रोफ़ेसर की पीठ पर सीटी
बजाई थी।

प्रोफेसर उस लड़के की तरफ घूमे और उसे घूरते हुए बोले-
" बेटा, मैंने अपनी पी एच डी की डिग्री,
मटर छीलकर हासिल नहीं की है,
निकल क्लास से बाहर...!! "
😂😂😂

बुझते चिराग

जुलाई का महिना वैसे तो बहुत गर्म होता हैं लेकिन ख़त्म होते-होते इसकी सुबह ठंडी होने लग जाती हैं,  मेरे गाँव में कल ही इंद्र देव मेहरबान हुए ...