रात के 11 बज रहे थे, मैं अभी भी छत पर खड़ा पूर्णत निराश, हतास, शिथिल शरीर व नम आँखों से चाँद को देख
रहा था जो असंख्य तारों की बिना परवाह किये विशालकाय बादलों सका चीरते हुआ तेजी से आगे बढ़ रहा था.
लेकिन मैं आज रुक गया था| कम्पनी में जॉब इसलिए नहीं मली क्यूंकि मेरे पास डिग्री तो थी लेकिन उसमे मार्क्स नहीं थे| वो लोग सवाल पूछते गये और मैं आँखों के विपरीत सर हिलाता गया
रहा था जो असंख्य तारों की बिना परवाह किये विशालकाय बादलों सका चीरते हुआ तेजी से आगे बढ़ रहा था.
लेकिन मैं आज रुक गया था| कम्पनी में जॉब इसलिए नहीं मली क्यूंकि मेरे पास डिग्री तो थी लेकिन उसमे मार्क्स नहीं थे| वो लोग सवाल पूछते गये और मैं आँखों के विपरीत सर हिलाता गया
बिल्डिंग की 10वी मंजिल से रोड पर चलती गाड़ियाँ भी अब धुंधली दिखाई दे रही थी, मन में हजारों विचार इस समय चल रहे थे, इतने जटिल और अनसुलझे की कोई सैकोलोजीस्ट मेरे पास बैठकर केवल कुछ ही घंटो में कोई नया रिसर्च करके पी.एच्.डी. कर सकता था.
कई सारे तारे टूट रहे थे लेकिन अब मैं कोई विश नही मांग रह था.
अपने रूम में गया और बैग उठाया, पानी की एक बोतल बैग में रखी और दूसरी हाथ में ली, फ्लेट को लॉक करके निकल पड़ा एक अनजानी राह पर न तो जाने का कोई ठिकाना था न ही कोई कारण, बस चलता रहा चलता रहा.
कॉलेज के 5 सालों में जिन महंगी-महंगी लग्जरी गाड़ियों में ही सफ़र किया वो उतना तेज नहीं था तेज आ मेरे कदम थे.
आज पहली बार मैं खुद से बातें कर रहा था, खुद को गलियां दे रहा था, खुद से प्रश्न कर रहा था और खुद ही उनका जवाब दे रहा था. मैं कोशिश कर रहा था इस समय के चक्र को रोकने की, लेकिन मेरे क़दमों ने जो गति पकड़ी थी उसके आगे यह असंभव था, बिलकुल असंभव|
प्रकृति का एक खुबसूरत सितारा पश्चिम की ओर अद्रश्य हो रहा था टो दूसरी ओर पूर्वांचल में दूसरा इससे भी खुबसूरत सितारा उदयमान हो रहा था|
चलते चलते लगभग 6 घंटे हो गये थे, शरीर पसीने से लतपथ था, इतनी बातें अपने आप से की की रास्ते में अगर इ भूत भी हमराही बना होगा तो वह भी डरकर वापस अपनी राह पर चला गया होगा|
मैं शहर से काफी दूर चला आया था|
चारो और खेत ही खेत नजर आ रहे थे| खेतों के चारों ओर कंटीले तारो की बाडबंदी (fence) तो की हुई थी लेकिन की इन्सान नजर नही आ रहा था|
पुराने वृक्षों पर जरुर हरे पत्ते थे लेकिन छोटे छोटे पौधे और झाड़ियाँ अपने को धरातल पर समर्पित कर चुकी थी|
बचपन में पढ़ी कहानियों ने याद दिलाया की यह किसी भीषण आकाल का दृश्य हैं|
मैंने सूर्य की और देखा, पहली बार नमस्कार करने को दोनों हाथ खुद-ब-खुद जुड़ गये, थोरी ही दुरी पर एक तालाब नजर आया, मैं उत्साहित होकर उस तालाब की पाल पर जा पंहुचा|
यह क्या?
मेरे कदम वहीं रुक गये, मरे हुए जानवरों के कंकाल ही कंकाल, पुराने खंडर और उनके ऊपर उड़ते काले काले कौवे और डराने गीद्ध.....
दोस्तों के साथ देखी होरर फिल्मों के जैसे सीन आज हकीकत में मेरे सामने थे|
मन में डर था, लेकिन जिज्ञाषा और उत्सुकता ने मुझे और आगे बढ़ा दिया|
अचानक मेरी नजर उ तीन पौधों पर पड़ी जो बिलकुल हरे-भरे थे| मैं 2 कदम पीछे हटा तो अचानक मेरा पैर ठहर गया जैसे मैंने किसी मासूम से जीव पर पैर रख दिया हो.
पीछे मुड़कर देखा टो एक और उनके जैसा ही खुबसूरत पौधा जो मेरे पैर से थोरा-सा कुचल गया था, मैं वहीँ पर बैठ गया और एक छोटे बच्चे क तरह वापस उसकी पत्तियों को खड़ा करके उसमे अपनी बोतल से पानी देने लगा|
हृदय से ईएसआई भावनाएं निकल रही थी मानो मौत से लड़ते किसी पक्षी को जखम देकर उस पर मरहम लगा रहा हूँ|
चारों पौधें हवा के चलने के साथ फटी व सुखी जमीन की बिना परवाह किये लहलाने लगे|
मैंने अपना मोबाइल निकाला और उन पौधों के साथ एक सेल्फी ले लि| यह सेल्फी मेरी फेसबुक वाल के लिए नही थी बल्कि मेरी जिन्दगी की किताब का मुखप्रष्ठ बनने जा रही थी|
इन पौधों को खुद की काबिलियत पर भरोसा था, फटी व सूखी जमीन के नीचे दबी नमी को सोखने का जज्बा था इनमे, इसी जज्बे ओ उम्मीद से लह लहा रहे थे की आने वाली सांझ या सवेरे बारिश जरुर होगी|
एक कंपनी ने मुझे जॉब देने से क्या मना कर दिया मैं निराशा के गर्त में चला गया....... हाय धिक्कार हैं मुझे , बहुत कायरता भरा निर्णय|
शहर पीछे छुट गया, वापस जाने का मन तो बिलकुल नही था, मैं सड़क किनारे जा पंहुचा| पहली ही बस में बिना गंतव्य बताये बैठ गया| दुसरे दिन सुबह तक में अपने गाँव जा पंहुचा था|
सीधे अपे पुराने घर चला गया जहाँ मेरे दादा -दादी रहते थे, उनके पास थोडा समय गुजारा फिर नहा-धो कर खाना खाया और चला गया एक कमरे में|
लेपटोप निकला और पुराने मेल खोलकर तलाशने लगा अपनी जमीन को|
वो फर्स्ट इयर के सेंकडो प्रोजेक्ट जो बनाने तो सुरु किये थे लेकिन पूरा एक भी नही किया था|
लगभग 2 माह तक मैं आस-पास की सभी स्कूलों व अस्पतालों में जा जाकर आंकड़े एकत्रित करता रहा| शिक्षा व स्वास्थय के क्षेत्र में आज भी बहुत सारी समस्याए मौजूद थी| सरकार तक सही आंकड़े नहीं पहुच पाने के कारण को भी योजना प्रभावी रूप से काम नही कर पा रही थी|
कागज पर कोई कलम तो चलाना ही नही चाहता था, कौन घर-घर घुमे बस यही बहाना था सरकारी बाबुओं का|
अगले 2 माह में मैंने अपना सोफ्टवेयर तैयार कर लिया था अब न तो कागज की जरुरत थी और न ही कलम चलाने की|
ग्राम पंचायत स्वयं एक जगह बैठे-बैठे अब सर्वे कर सकती थी|
जिस काम में लाखो रूपये व बहुत सारा समय बर्बाद हो जाता था अब उसे बचाया जा सकता था|
मेरा सॉफ्टवेर राज्य सरकार तक पहुच चूका था|
कुछ परीक्षणों के बाद सरकर ने इसे स्वीकार कर लिया|
समय और हालात इतने तेजी से बदलेंगे सोचा भी नही था, आज मैं राज्य सरकार का ब्रांड बन चूका था कई सारी कम्पनियों के ऑफर आने लागे लेकिन अब न तो इच्छा रही और न ही लालसा|
अब मुझे वो तमाम प्रोजेक्ट पुरे करने थे जो अधूरे पड़े थे,
अब मुझे अटूट विश्वास था की मेरे सरे प्रोजेक्ट पुरे होते ही किसी कंपनी से कम नही होंगे मेरा कम ही मेरा बॉस होगा.... मैं हर एक प्रोजेक्ट के पुरे होते ही उस पर एक किताब जरुर लिखता हूँ क्योंकि एक इंजिनियर सर किताबें पढता ही नहीं बल्कि किताबें बुनता भी हैं.
शहर पीछे छुट गया, वापस जाने का मन तो बिलकुल नही था, मैं सड़क किनारे जा पंहुचा| पहली ही बस में बिना गंतव्य बताये बैठ गया| दुसरे दिन सुबह तक में अपने गाँव जा पंहुचा था|
सीधे अपे पुराने घर चला गया जहाँ मेरे दादा -दादी रहते थे, उनके पास थोडा समय गुजारा फिर नहा-धो कर खाना खाया और चला गया एक कमरे में|
लेपटोप निकला और पुराने मेल खोलकर तलाशने लगा अपनी जमीन को|
वो फर्स्ट इयर के सेंकडो प्रोजेक्ट जो बनाने तो सुरु किये थे लेकिन पूरा एक भी नही किया था|
लगभग 2 माह तक मैं आस-पास की सभी स्कूलों व अस्पतालों में जा जाकर आंकड़े एकत्रित करता रहा| शिक्षा व स्वास्थय के क्षेत्र में आज भी बहुत सारी समस्याए मौजूद थी| सरकार तक सही आंकड़े नहीं पहुच पाने के कारण को भी योजना प्रभावी रूप से काम नही कर पा रही थी|
कागज पर कोई कलम तो चलाना ही नही चाहता था, कौन घर-घर घुमे बस यही बहाना था सरकारी बाबुओं का|
अगले 2 माह में मैंने अपना सोफ्टवेयर तैयार कर लिया था अब न तो कागज की जरुरत थी और न ही कलम चलाने की|
ग्राम पंचायत स्वयं एक जगह बैठे-बैठे अब सर्वे कर सकती थी|
जिस काम में लाखो रूपये व बहुत सारा समय बर्बाद हो जाता था अब उसे बचाया जा सकता था|
मेरा सॉफ्टवेर राज्य सरकार तक पहुच चूका था|
कुछ परीक्षणों के बाद सरकर ने इसे स्वीकार कर लिया|
समय और हालात इतने तेजी से बदलेंगे सोचा भी नही था, आज मैं राज्य सरकार का ब्रांड बन चूका था कई सारी कम्पनियों के ऑफर आने लागे लेकिन अब न तो इच्छा रही और न ही लालसा|
अब मुझे वो तमाम प्रोजेक्ट पुरे करने थे जो अधूरे पड़े थे,
अब मुझे अटूट विश्वास था की मेरे सरे प्रोजेक्ट पुरे होते ही किसी कंपनी से कम नही होंगे मेरा कम ही मेरा बॉस होगा.... मैं हर एक प्रोजेक्ट के पुरे होते ही उस पर एक किताब जरुर लिखता हूँ क्योंकि एक इंजिनियर सर किताबें पढता ही नहीं बल्कि किताबें बुनता भी हैं.
उगते सूर्य को साक्षी मानकर उन 4 पौधों के साथ ली गई सेल्फी मेरे जीवन की सेल्फी थी|
Thanks dear
ReplyDeleteNice
ReplyDeletethanks dear
Deletethanks dear
ReplyDeleteWonderful brother ����
ReplyDeleteWao NYC experience and best selfie
ReplyDeleteThanku so much dear
Deletelovely
ReplyDeleteNice 👌
ReplyDeleteNice 👌
ReplyDeletethanks
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