बुझते चिराग

जुलाई का महिना वैसे तो बहुत गर्म होता हैं लेकिन ख़त्म होते-होते इसकी सुबह ठंडी होने लग जाती हैं,  मेरे गाँव में कल ही इंद्र देव मेहरबान हुए थे तो आज की सुबह में कुछ अलग ही फीलिंग आ रही थी.
आज मेरी जिन्दगी में एक नये युग की शुरुआत होने जा रही थी मैंने अपनी जिन्दगी का पहला पड़ाव पर कर लिया था.

वो पड़ाव था घर के पास की स्कूल से 5वीं पास कर लेना| लास्ट 2 क्लास में यद्धपि काम तो मेरा एक ही था वो था गुरु जी को टाइम पर चाय बना के पिला देना और उनकी मोटर साइकिल को साफ कर देना,
लेकिन इसका  मुझे बहुत ही बड़ा फल मिला, वो ये था की 7 बच्चो की क्लास में मैं प्रथम आ गया था.

एक और बात थी जो मेरे लिए बहुत ही ज्यादा सम्मान वाली  बात थी वो यह की मुझे उस 5 इंच लम्बाई वाली नेकर से छुटकारा मिल गया जो कभी-कभी ढंग से नहीं बैठने पर बे-इज्जती भी करवा देती थी, पूरी क्लास को ब्रह्माण्ड के 9वे  ग्रह के दर्शन हो जाते और घर जाते टाइम रास्ते में ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती. 

लेकिन भगवन सब की सुनता हैं और आज मेरी भी सुन ली,  मुझे इससे छुटकारा मिल गया और फुल पेंट पहनने को  मिल गयी. 

आज मैं बहुत बड़ा बन गया था क्यूंकि गाँव की बड़ी स्कूल मैं पढने जा रहा था, प्रथम स्थान का गोल्ड मैडल मेरे दिमाग में था तो कॉन्फिडेंस की तो कोई कमी ही नहीं थी. 

स्कूल पहुचते ही थोरी देर में प्रार्थना शुरू होने वाली थी सो हम भी लग गये लाइन में, इतना ज्ञान तो  हम अर्जित करके ही आये थे की प्रार्थना में छोटे आगे और बड़े पीछे खड़े  होते हैं,  इस हिसाब से हम आगे से तीसरे  स्थान को काबिज करने में कामयाब रहे.

पीछे कौन खड़ा है इससे हमें  अभी कोई मतलब नहीं था. मतलब था तो सिर्फ उस बात का की हम फर्स्ट रेंक वाले हैं और गुरु जी सिर्फ हमें ही तव्वजो देंगे.

क्लासेज सावधान....!!

मेरा कलेजे ने न जाने कब अपनी  धड़कन बढ़ा ली,  पता ही नही चला. और मैं बस फटी-फटी  आँखों से उस 6 फीट लम्बे, बड़ी- बड़ी विषमबाहू त्रिभुज जैसी मुछों वाले गुरुजी  को देखता ही रहा. 

ये क्या ससुरा इधर तो सारा मामला ही अलग था. सारा जोश ही ख़त्म हो गया.

खैर प्रार्थना सभा ख़त्म हो गयी हम आ बैठे अपनी क्लास में,

वैसे तो  अब मुझे किसी की याद नहीं आ रही थी लेकिन एक प्राणी जरुर पीछे रह गया उसका थोड़ा मलाल जरुर था, उसका नाम यही बता देता हूँ क्योंकि  कहानी आगे बहुत सीरियस होने वाली हैं और उस उधेडबुन में क्या मालूम नाम बता ही नहीं पाऊ.

वो प्राणी था ......नहीं ... बल्कि थी  " चुटका"

चुटका मेरी स्कूल की सबसे खुबसूरत कन्या थी..

लेकिन सच बताऊ ना तो इस स्कूल में  आते ही चारुमती से  मुलाकात क्या हुई..... चुटका की यादें  बाबर के ज़माने की किसी  सेठ की बेटी की कहानी जितनी पुरानी लगने लगी .

 5वीं तक हमने न तो कभी  कमीज पेंट में डालना सीखी न  ही  होम वर्क के लिए बैग में नोटबुक डालना|  लेकिन यहाँ मामला ही अलग था ... तीसरे ही दिन उन  विषमबाहू त्रिभुज जैसी मुछों वाले गुरु जी ने पिछवाड़े पर ऐसा डंडा जमाया की पुरे अगले 5 साल तक कैसे रहना हैं इस स्कूल में,  सब समझ आ गया

ये मेरी जिन्दगी में डंडा खाने का  पहला अनुभव था.... कैसा था,  यह  आप सबको मालूम ही है.
2 दिन तक मम्मी से छुप-छुप कर बर्फ से सेक करता रहा. और भी बहुत कुछ किया जो मैं आपको नहीं बता सकता|

अभी तक इस क्लास का मैं ही टोपर था लेकिन दुसरे ही दिन क्लास मैं जब सबके इतिहास का विश्लेषण हुआ टो मालूम हुआ मेरे जैसे 10 और टोपर भी थे इस क्लास में. इन टोपर में ज्यादातर तो मेरे जैसे ही टोपर थे जो गुरुकृपा से ही टोपर बने थे.
लेकिन रियल टोपर जो थी उसका जिक्र मैं पहले ही कर चूका हूँ.... और वो थी चारुमती........?

हर क्लास में कुछ बच्चो में टॉप रहने की रेस लगी रहती हैं और कुछ बच्चें ऐसे  होते है जो लाइफ में ऐसी  रेस से दूर रहना ही पसंद करते हैं.
आज के बाद मैं दुसरे टाइप के बच्चों में शामिल हो गया.

हर एक क्लास में वैसे अलग-अलग स्वभाव के बच्चें होते हैं.... लेकिन हर क्लास में एक शाहरुख़ जरुर होता हैं

और मेरी क्लास में भी एक शाहरुख़ मिल गया|

श्री नागेश (वास्तविक नाम नागेन्द्र ) एक निजी स्कूल से 5वी पास करके आया था. और वो भी टोपर था.
लेकिन उसकी आदतों से कोई भी बता सकता था की वो भविष्य में किसी गेंग  का कमांडर जरुर बनेगा,  कुछ ही दिनों में उसने अपना शुरुर दिखाना शुरू भी कर दिया|

आज  इस स्कूल में मेरा तीसरा दिन था,  क्लास शुरू ही हुई थी की प्रिंसिपल साहब और साथ में 1 औरत गुस्से में लाल पिली हुई एकदम लेडी भीम की तरह तरह दिख रही थी मेरी क्लास में आ धमकी.

नागेश कौन हैं?

प्रिसिपल साहब ने अपनी बात पूरी की नहीं उससे पहले ही डॉन नागेश खड़ा हो गया....
लेडी को देखते ही उसे सब समझ आ चूका था...

और नागेश में डबल जोश आ गया अब  नागेश की जगह शाहरुख खड़ा था..

प्रिंसिपल साहब ने अगला प्रश्न एक जोरदार डंडे से किया..... लेकिन शाहरुख पर इसका कोई असर नहीं हुआ....

बल्कि बॉडी जमीन के आधार से बिलकुल समकोण पर सीधी हो गई|

रास्ते मैं गर्ल्स को क्यों घूरता हैं रे?

इस प्रश्न पर शाहरुख का मुह शंख जैसा जरुर हो गया लेकिन जुबान अभी भी शंख के भीतर ही थी.

एक और डंडा.......... और शाहरुख का मुह शंख से गोल मटके जैसा हो गया और होठों के बीच से हल्की-हल्की दर्दानी हवा निकालनी शुरू हो गई.. पर  नागेश का एक्शन बिलकुल शाहरुख़ जैसा ही था.

कुछ बोलता क्यों नहीं?

स्कूल में आते ही बदतमीजी... ये माता जी क्या बोल रही हैं?
माता जी ??????
शाहरुख़ के कलेजे नही उतरा ..... और दोनों कंधे एक साथ ऊपर होकर डंडे को देखकर तुरंत नीचे हो गये.

हाँ साहब ये मेरी चारू को पुरे रास्ते परेशान करता हैं.. पिछली स्कूल में भी इसने बहुत परेशान किया था.

चारू.....?

नाम क्या सुना मैंने,  अब तक जो शाहरुख मेरे सामने था वहां  मुझे अब शक्ति कपूर नजर आ रहा था... आये भी क्यों नही आखिर उस चारू के हम भी तो ..... दीवाने बन गये थे..

हाथ निकाल बदतमीज....
नागेश ने हीरो के अंदाज में ही अपना हाथ आगे कर दिया... और डंडा दे दना दन.... 1..2..3... और डंडश्याम खुद टूट गये .... उधर  नागेश का चेहरा पंचभुज जैसा जरुर हो गया था... लेकिन बॉडी अभी भी समकोण पर ही थी...  साहब बाहर निकले..

और इधर नागेश बाथरूम में पहुच चूका था...

खैर स्कूल टाइम के  ऐसे किस्से तो बहुत होते हैं.. लेकिन कुछ बाते जो होती हैं उसे हम जिन्दगी भर नहीं भुला सकते|

अभी 3 माह बीत चुके थे.. और स्कूल में अर्धवार्षिक परीक्षा का माहौल बन चूका था|

आज महीने का आखिरी दिन था तो  छुट्टी जल्दी हो गई..  मैं साइकिल स्टैंड में अपनी साइकिल पर बैग रखकर जूते ढंग से पहन रहा था. तभी एक विशालकाय हाथी मेरे पास आता हैं और गाय जैसी मासूमियत के साथ बोलता हैं

हजारी ........

तेरी तो ..... मेरा नाम हेमेन्द्र हैं..

(लेकिन उसकी कोई गलती भी तो नहीं थी हेमेन्द्र नाम सिर्फ कागजों में ही था.. आस-पड़ोस के और घर में तो  मैं हजारी ही था. फिर स्कूल में 2-3 पडोसी तो  आते ही हैं तो यहाँ भी हजारी ही था )

मैंने उसकी काया का  सम्मान करते हुए अपना वॉल्यूम धीरे कर लिया.


हाँ बोल..? मैंने कौहतुलवश  उसे देखा.

मुझे आपकी हेल्प चाहिए ?

मुझसे हेल्प ???

हाँ तुमसे  हेल्प

समझ  मैं नहीं आ रहा था इस विशायकाल हाथी की मैं हेल्प करू.. और ऐसा कौन हैं जिसने इससे पंगा ले लिया|

खेर अपनी इज्जत और हेकड़ी तो रखनी जरूरी थी मेरे लिए.
उसके कंधे पर हाथ रखकर शर्केश्वर बनकर  बोला बता किसने पंगा लिया हैं तुझसे?

पंगा किसी ने नही लिया भाई... उसकी आवाज मैं इतनी मासूमियत थी की वो उसके डील डोल से मैच ही नही कर रही थी.
तो क्या हेल्प करू? .. मैंने तो आज तक इस कामो में ही हेल्प की थी. लेकिन ये प्राणी आज कुछ और ही चाह रहा था,

उसने बोला की उसका होम वर्क बाकि हैं

तो यहाँ कौनसा पूरा होता था. मेरा तो पुरे एक वीक लेट चलता था.

मैंने बोला... एक काम  कर तू   जा चारुमती से बोल  मेरा नाम लेकर. 

मैं अपनी साइकिल पर बैठ कर उसे राकेट बना चूका था.

***
अर्धवार्षिक परीक्षा की तैयारियां जोरो पर थी की तभी स्कूल के कुछ हलचल हो गयी और वो ये थी की उस विषमबाहू त्रिभुज का ट्रान्सफर किसी और स्कूल में हो गया.
अब हमारे स्कूल में गणित का कोई टीचर नहीं था सो हमें गणित के होमवर्क से छुटकारा मिल गया, 
 उस हेमंत हाथी की ख़ुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था,
बहुत  टाइम बाद उसके चेहरे पर मुस्कुराहट थी, लेकिन पढ़ाकू प्राणियों के मुह तो सूखे नारियल जैसे हो गये थे, सबसे होशियार जीव चाँद मोहम्मद की शकल तो कृष्ण पक्ष की पंचम के चाँद  जैसी हो गयी|

लेकिन कुछ दिन ही बीते थे की स्कूल को फिर से गणित का टीचर मिल गया

सबको यही उम्मीद थी की नये गुरु जी विषमबाहू से तो अच्छे ही होंगे

इसी उम्मीद के साथ उनका बहुत गरमजोशी से स्वागत हुआ, पुरे स्कूल को यही उम्मीद थी इनसे की ये बहुत शानदार रिजल्ट देंगे

लेकिन हुआ सब उम्मीदों के विपरीत|

मैंने अपनी लाइफ में अलग-अलग तरह के टीचर देखे थे कोई प्यार से पढ़ता था तो कोई थोड़ा   सख्त होकर, लेकिन  पढाई सब करवाते थे
परन्तु ये जनाब तो कुछ अजीब ही निकले, गणित जैसा सब्जेक्ट ये सिर्फ डंडे के बल पर पढ़ाने में विश्वास करते थे, अब मेरे जैसे विद्यार्थी का क्या हाल होता जिसका जोड़, बाकि, गुणा तक तो  मामला ठीक होता लेकिन भाग में जाते ही दिमाग में ज्वालामुखी फटने लगता|

किसी को कितना समझ में आया या नहीं ये बात अलग थी, होमवर्क तो उनको एकदम तैयार ही चाहिए था|
क्लास का माहौल  बिलकुल बदल गया, अध्यापक-विद्यार्थी के बीच हंसी-मजाक में पढाई की बजाय अब सब सीरियस हो गये|

हमेशा की तरह सन्डे की छुटी के बाद आज सोमवार आ ही गया.. अब सोमवार अपने साथ एक अदृश्य दैत्य को लेकर आता था.
गुरु जी का खौफ इतना था की किसी ने उनका लोकल नाम ही नहीं रखा, वरना कौन ऐसा  टीचर था जिसका कोई  दूसरा नाम न हो, जो उसको छोड़कर सबको मालूम होता|

हेमंत अपनी नोट बुक लाओ.

सुना नहीं क्या... ?

3 बार कहने के बाद हेमंत अपनी नोटबुक निकालकर अपनी ही जगह पर खड़ा हुआ|

जब पहले हेमंत इस तरह से धीरे-धीरे खड़ा होकर, दुल्हे की तरह कदम रखता तो पूरी क्लास के लिए ये लाइव कॉमेडी होता  लेकिन अब सब शांत थे|
आज हेमंत भी बहुत गंभीर मुद्रा में था. वरना एक छुपी हुई मुस्कान हमेशा उसके चेहरे पर रहती थी|

हेमंत ने 2 कदम आगे रखे थे तब तक गुरु जी खुद उस तक पहुच चुके थे .. कुछ और न बोले बल्कि जितना हो सकता था उतनी ताकत से उसको डंडे से मार  डाला.

हेमंत धडाम से गिर पड़ा|

जिन्दी में पहली बार मेरा कलेगा डर और करुना से रो उठा.
मैंने भी खूब डंडे खाए, और दोस्तों को खाते भी देखा, लेकिन ये इस तरह ??

हेमंत खड़ा हुआ तो उसके हाथ से नोटबुक लेकर देखा तो गुरु जी की आँखे ऐसी हुई की अगर उनके बीच में  नाक नहीं होती तो दोनों आपमें टकराकर वही आत्महत्या कर लेती.

ये क्या लास्ट 2 महीनो से कुछ किया ही नहीं|

पहले का काम भी बाकि पड़ा था|
मुझे अपनी गलती का अब अहसास हुआ काश में उस दिन उसकी मजाक नहीं उडाता|

गुरु जी एक-एक पन्ना देखते जा रहे थे और साथ में डंडे से उसे मारते जा रहे थे.
किसी की हिम्मत नहीं थी की कोई उसे बचा ले,

उस दिन क्लास में मातम छा गया था. संवेदना और दया की आँखों के सामने हत्या होती देखी थी पूरी क्लास ने, और शायद ही कोई भूल पायेगा अपनी जिन्दगी में|

स्कूल की छुटी हो गयी. में बाहर खड़ा हेमंत का इंतजार करने लगा, वो आया और मेरी आँखों के सामने से निकल गया, में बस उसे देखा रहा, खुद को कोसता रहा काश उस दिन उसका होमवर्क पूरा करवा देता.

वो अपनी बस में बैठ चूका था|

शाम हो गई , मैंने हिम्मत की और हेमंत के घर जा पंहुचा|

ये क्या ??

हेमंत खेल रहा हैं.. उसको कोई फ़िक्र ही नहीं. मैने सोचा वो आज अपना काम करता होगा

लेकिन यहाँ तो कहानी ही अलग थी, हेमंत की माँ ने बताया ये हमेशा ऐसे ही करता हैं, डॉ. ने बताया की इसको कुछ ज्यादा याद नहीं रहता हैं.

अब तो मैं और परेशान हो गया... सोचने लगा क्या अब आगे भी इस तरह ही रहेगा हेमंत?? क्या रोज-रोज  मार खानी पड़ेगी उसे?

उस दिन तो मैं वापस घर चला गया था लेकिन रात भर सो नहीं पाया. मुझे हेमंत की प्रॉब्लम सताए जा रही थी.
सोच रहा था मैं ही कर दू उसका होमवर्क लेकिन कैसे? आज तक मैंने खुद अपना होम वर्क कभी पूरा नहीं किया था | रात भर सोचने के बाद मेरे शैतानी दिमाग में एक उपाय सूझ ही गया.मैंने तय कर लिया की हेमंत केवल गणित का होमवर्क ही करेगा|हेमंत ने ऐसा ही किया

लेकिन दूसरी समस्या ने उसका पीछा कर लिया. और ये पहली से ज्यादा खतरनाक थी, गणित के गुरु जी की नजरों में हेमंत अब एक निठल्ला विद्यार्थी था. हर एक कमजोर विद्यार्थी पर उसका ही उदहारण दिया जाने लगा.
गुरु जी का ये तरीका हेमंत को अन्दर ही अन्दर कमजोर कर रहा था.
एक अध्यापक जिसको सरकारी सिस्टम में सबसे ज्यादा इज्जत मिलती हैं वो एक भोले-भाले और नादान बच्चे के करियर और जिन्दगी के भविष्य की इज्जत लूट रहा था लेकिन कौन था जो उसे रोक ले!!

कभी-कभी जिन्दगी में एकाएक कुछ ऐसी घटना होती हैं की  एक अजनबी जिससे हमारा कोई वास्ता नहीं होता वो अचानक से हमारी जिन्दगी का हिस्सा बन जाता हैं|
कुछ ऐसे ही हेमंत मेरी जिन्दगी का हिस्सा बन गया था
अब मैं ये जान चूका था की परीक्षा में हेमंत मेरे ठीक आगे  ही बैठेगा|

और मेरा मिशन था हेमंत को गणित की परीक्षा में पास करवाना. मैं जानता था नक़ल करवाना और करना सब गलत हैं. लेकिन सच कहू न तो मेरी लड़ाई परीक्षा से नहीं उस कर्तव्य विमुख टीचर से थी.

स्कूल की छुटी  होते ही मैं हेमंत के घर चला जाता और उसके गणित का होमवर्क पूरा करवा देता|

अर्द्ध-वार्षिक परीक्षा बिलकुल नजदीक थी अत: हम सब पढाई में लग गये,  कोशिश कर रहा था की हेमंत भी कम से कम पासिंग मार्क्स तो ले ही आये,

लेकिन मैं जितनी कोशिश करता हेमंत उतना ही कम पढाई करता, ऐसा लग रहा था जैसे मैं उसके साथ बरदस्ती कर रहा हूँ|
अर्धवार्षिक परीक्षा भी आ गई, मुझे अपने परसेंटेज की कोई चिंता नहीं थी, बस हेमंत को पास करवाना था|
***

चिंता कीचड़ की तरह है जो इन्सान को अपनी और खींचती ही जाती हैं,  जिस हेमंत को कोई भी कुछ भी बोल देता,फिर भी उसके   चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहाट ही देखने को मिलती वो अब एक बुझे दीपक की तरह लगने लगा|

गुरु जी द्वारा बार-बार टोकने और  हतोत्साहित करने के कारण वह अब निराशा और हताश हो चूका था| 

अर्धवार्षिक परीक्षा के मार्क्स सुना दिए गये, बस पास हुआ था वो उसमे भी गुरु जी की नींद हराम हो गयी, आखिर क्यों?

क्या दुश्मनी थी उसकी, क्या वो अपना स्वभाव नहीं बदल सकते थे, क्या शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांत ही उनके वसूलों के खिलाफ थे, या फिर वो इन सिद्धांतों को पढ़कर ही नहीं आये, बाल  मनोविज्ञान का तो कोई अस्तित्व ही नहीं था उनकी दुनिया में|

अर्धवार्षिक परीक्षा के मार्क्स ने गुरु जी की हकीकत को सामने रख दिया, मजाल था  कोई 50 से ज्यादा नंबर ले आये| 

ज्ञान था लेकिन रटा रटाया .. पढ़ाना कैसे हैं ये उनको नहीं मालूम था, डंडे के बल पर उन्होंने  जो माहौल बनाया उसने सब बच्चों में डर बैठा दिया, किसी की दिलचस्पी ही नही रही उनसे पढने की और इसी का परिणाम था ये  रिजल्ट.

समय अपने अदृश्य पंखो से उड़ता चला गया और वार्षिक परीक्षा भी नजदीक आ गयी,

जैसे-तेसे करके मैं हेमंत का गणित का होमवर्क तो पूरा करवाता रहा लेकिन उसने कितना पढ़ा ये मुझे मालूम ही था, अपने दम पर वो शायद ही पास हो सकता था|

दुनिया में हर एक इन्सान में एक अद्वितीय प्रतिभा होती हैं लेकिन बहुत  कम होते हैं खुशकिस्मत जिनकी वो प्रतिभा दुनिया के सामने आ पाती हैं, हेमंत जैसे बच्चों के लिए तो बहुत ही मुश्किल, इतना सुडोल और मदमस्त शरीर, देखने पर किसी पहलवान से कम नहीं लगता था वो, शायद जरुरत थी तो सही तरीके से गाइड करने की, किताबी ज्ञान से परे भी बहुत था उसके लिए करने को इस दुनिया में|

लेकिन जिस के भरोसे उसके नाव रुपी जीवन की बागडोर थी वो खुद ही उसमे छेद कर रहा था तो भला कैसे पार हो शक्ति थी  उसकी नैया|


10 दिन बाद परीक्षा शुरू होने जा रही थी और अब स्कूल से हमे छुट्टियाँ मिल चुकी थी|
***

ये 10 दिन कब निकल गये पता ही नही चला और आज हम सब आ बैठे परीक्षा रूम में, सब को  उत्तर-पुस्तिका दे दी गयी, और कुछ ही मिनट बाद हमारे हाथ में पेपर आ गया, 
 लेकिन ये क्या मेरे आगे वाली कुर्सी अभी तक खाली थी, क्या हो गया ? हेमंत क्यों नहीं आया? शायद 5 मिनट में आ जायेगा.. शायद बस छुट गयी होगी? 

तरह-तरह मनौपज प्रश्नों के जवाब देते देते 10 मिनट हो गये. और मेरा मन बुझता रहा,, बेमन से हाथ खाली पेपर पर खानापूर्ति कर रहा था..
जिस विषय को मैंने जिसके लिए इतना तैयार किया वो आज खुद नहीं आया. वरना इन प्रतिशत के भूत को तो  मैं कब का भगा चूका था|

समय पूरा हो गया, हमसे उत्तर-पुस्तिका  ले लि गयी. 

मैंने अपनी साइकिल को फिर से रोकेट बनाई और सीधा लौंच कर दिया हेमंत के घर की और|

हेमंत की मम्मी अपने काम में बिजी थी, उन्होंने मेरी और ध्यान ही नही दिया. फिर मैंने इधर-उधर तांका. लेकिन कोई और नहीं  दिखाई दे रहा था|

मेरा कलेजा और धक-धक करने लगा

मैंने हिम्मत करके हेमंत की मम्मी से पूछ ही लिया,
मम्मी जी हेमंत....?


मैंने अपना प्रश्न पूरी नहीं किया उससे पहले ही सामने से जवाब आ गया 

7 दिन हो गये हैं उसको बाहर गये हुए, कुछ नही सिखा पुरे साल, खुद ही बोल रहा था की वो पास नही होने वाला इस बार|


मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी... शरीर कंपकंपा उठा|

फिर अपने को संभाला और वापस साइकिल पर बैठा और अपने रास्ते निकल कर कुछ दूर एक पेड़ की छाया में बैठ गया.

 वो हिम्मत हर गया था...... नहीं नहीं उसे हरा दिया गया था. 
मैं  खुद की नजरों में गिर गया. आखिर क्यों मैंने उसकी सहायत नही की जब उसने खुद मुझसे मांगी.. और जो चीज उसने मांगी ही नहीं वो मैं करने बैठ गया, 

मेरा वो बचपन था गलत और सही को मैं ज्यादा जस्टिफाई नहीं कर सकता था लेकिन वो गुरु जी जिन्होंने
जिन्दगी के काफी दशक देख लिए थे, अन्याय तो उन्होंने किया|

एक हेमंत जिसमे कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत थी, बस जरुरत थी तो उसे थोड़ा- सा मोटीवेट करने की लेकिन अपनी झूठी शान के लिए अड़े रहे और उसकी हिम्मत और मनोकामनाओ को मार डाला.



ज्यादा टाइम नही रुक पाए थे वो गुरु जी मेरी स्कूल में, दुसरे ही साल उनके ट्रान्सफर का आर्डर आ गया, उनका विदाई समारोह रखा गया.

यद्यपि मैंने आज तक मंच पर जाकर कभी कुछ नही बोला था लेकिन इस बार मैंने हिम्मत कर लि थी
और 2 लाइन बोल डाली गुरु की बारे में.

कौन-सी कर्ज अदा की आपने
जो बिन बुलाये वसूली करने आ चले
बहुत लम्बा सफ़र अभी और बाकि हैं आपका   
रखो  निरर्थक दर्प को दूर
अभी जलाने वो बुझते चिराग बाकि हैं

लेखक :- हीरा लाल भारतीय



































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बुझते चिराग

जुलाई का महिना वैसे तो बहुत गर्म होता हैं लेकिन ख़त्म होते-होते इसकी सुबह ठंडी होने लग जाती हैं,  मेरे गाँव में कल ही इंद्र देव मेहरबान हुए ...