इस वर्ष की पहली ही बारिश ने इस सूखे रेगिस्तान को ऐसा तरबतर किया कि छोटे-छोटे रेत के टिल्लों के चारों और पानी ही पानी हो गया और वो सूखे टापू बन गये.
हवा जरुर ठंडी हो गयी थी लेकिन पूरे गर्मी के मौसम में रेगिस्तानी धरा इतनी गर्म हो गयी थी की अभी भी धरातल से गर्मी महसूस हो रही थी .
पृथ्वी के ऊपर रहने वाले जीव जंतुओं के लिए ये धरा मानो स्वर्ग बन गयी हो लेकिन धरातल के नीचे रहने वालें जीवों के लिए एक क़यामत आ जाती हैं और वो जमीन से बाहर निकल आते हैं .
यही सोचकर सनाया की अम्मी ने आवाज लगाई ..
सनाया ...!
जी अम्मा ...!
आज घर की छत पर ही सोना , मौसम बहुत सुहावना हैं, साथ ही जमीन से कोबरा भी निकल सकता हैं .
इतना क्यों डरती हो अम्मा .. मैंने पहले से ही 2-4 लाठियां तैयार रखी हैं आते ही उसे धमका दूंगी .
सनाया के बापू की मौत कोबरा के काटने से हुई थी ये सब जानते थे .. लेकिन एक और बात थी जो सब गाँव वाले तो जानते थे लेकिन नहीं जानती थी तो वह एकमात्र इन्सान थी सनाया|
सनाया का पिता के प्रति अटूट प्रेम
सनाया का पिता के प्रति अटूट प्रेम
किसी भी समाज में चाहे कितनी भी सामाजिक रूढ़ियाँ , अशिक्षा मौजुद हो लेकिन वहां भी एक पिता का अपनी बेटी और बेटी का अपने पिता के प्रति अटूट प्रेम होता हैं
ये बात अलग थी की इस बेटी ने अपनी आँखों से कभी अपने पिता को नही देखा था, क्या फर्क पड़ता हैं इन बातों का, भावनाएं किसी डोर से बंदी नही होती जो जरा-सी मुसीबत आये और टूट जाये.
जब बात अपनों की हो तो हर पल दिल में होती हैं ये भावनाएं.
सनाया बचपन से बहुत बहादुर लड़की थी, घर में माँ और उसके सिवाय था ही नही दूसरा कोई जिससे वो अपनी रक्षा की उम्मीद कर सके|
इसी अकेलेपन ने उसे मौका दिया एक निडर योध्दा बनाने का.
समाज और गाँव के हर एक काम में वह भाग लेने लगी. अपने जैसी बालिकाए जो न तो स्कूल जा पाती और न ही उन्हें घर से बाहर निकलने दिया जाता था उनके लिए मसीहा बनाने की ठान ली थी उसने.
ये बड़ी अजीब और निराश करने वाली बात हैं की जब इसी छोटी-छोटी जगहों से कोई इन्सान कुछ नया करने की ठानता हैं तो पहला विरोध उसके घर परिवार से ही होता हैं खासकर बात जब अंधविश्वास और गलत परम्पराओं के विरोध करने की हो.
खुद अपना वजूद देखो सनाया... निकल पड़ी हो समाज सुधारने को .!!
मेरा वजूद में ही हूँ जनाब... आप बस अपनी लाली को लगाम दो.
गाँव के इस अधेड आदमी को एक टुक जवाब देकर वह आगे बढ़ गई ....
लेकिन इस निडर बाला को अभी बहुत कुछ जानना था इस दुनिया के बारे में.
एक शाम वह पानी लेने के लिए जा रही थी की वहां उसे गाँव का ही भीखू बुखारी मिल गया, और बोलने लगा
अच्छा तो यह हैं समाज-सुधारक??
खुद का पता नही और उपदेश..
हाँ तो क्या ग़लत हैं इसमें चाचा..?
गलत कुछ नही.... लेकिन आज तक कुछ सही भी नही हुआ... यहाँ तक की तुम्हारा जन्म भी.
सनाया कुछ समझ नही पाई. कुछ देर उसकी और देखती ही रह गई..
क्या घूर-घूर के देख रही हैं .. जाकर पूछ अपनी माँ से.. क्या अखनूर ही तेरा बाप था या कोई ........
भीखू आगे कुछ बोलता उससे पहले ही सनाया ने पानी से भरा घड़ा उसके मुह पर दे मारा और भाग गयी अपने घर की ओर..
पीछे से भीखू जोर से आवाज लगता हैं..
तस्कर, चोर, औरतों और लड़कियों को बेचने वाले की औलाद भी आखिर .....
सनाया के कदम रुक गये तो उधर भीखू की आवाज भी रुक गयी आखिर पानी के घड़े की लगी चोट का दर्द अभी जिन्दा जो था.
"तस्कर, चोर, औरतों और लड़कियों को बेचने वाला " बस यही शब्द बार बार गूंजने लगे इस कन्या के कानों में .
सनाया का पिता से नफरत हो जाना
क्या हुआ बेटा.. ?
आँखों में गुस्सा, चेहरे पर हताशा का भाव एक अजीब-सा मनोभाव दिखा रहा था इस समय सनाया के चेहरे पर|
माँ समझ चुकी थी इस मनोभाव को, जरुर किसी ने अनचाहे और कठोर सत्य से रूबरु करवाया हैं इसे.
इतना बड़ा झूठ...?
या सच बोलने से डर लगता था आपको?
ऐसा कुछ नहीं हैं.... क्या हुआ ये तो बताओ
जिस पिता को लेकर मैं इतनी गौरवान्वित थी... सोचती थी बहुत बड़े इन्सान होंगे वो? शायद लोग इसीलिए ज्यादा नहीं बोलते उनके बारे में.
माँ निशब्द थी इस समय|
हाँ बेटा कुछ बातें ऐसी होती हैं जिसके बारे में जितनी कम सच्चाई जानोगे उतना ही अच्छा होता हैं,
उनकी सच्चाई जानना अपनों के प्रति नफरत पैदा करने से ज्यादा कुछ नहीं होता।
ऐसा आपका मानना हैं अम्मा।
आज भीखू बोल रहा था की मैं एक तस्कर, चोर, औरतों और बच्चियों को..
गला भर आया था उसका,
कितना भी मजबूत क्यों न हो कोई इन्सान, माँ के सामने पिघल ही जाता हैं|
आँखों मैं आंसू लिए सनाया इस क्षण अपनी माँ के आँचल में थी.
कुछ भी हो अम्मा मुझे पूरी सच्चाई जाननी हैं.
अब माँ के पास अपने काले अतीत को बताने के सिवाय कोई चारा नही था।
रात सामने थी, पूरा आसमां तारों से सजा हुआ था, घर के बाहर चारपाई पर माँ बैठी थी और सनाया उसकी गोद में सोती-सोती सुनने लगी अपने ही बाप के बुरे कारनामे।
अखनूर मादक पदार्थों की तस्करी कर खूब पैसा कमाता था, लेकिन कभी मुझे अपनी पत्नी की नजरों से नही देखा था.
में थी तो सिर्फ एक खरीदी हुई वस्तु, कई बार कोशिश की थी मैंने भाग जाने की लेकिन कोई रास्ता भी तो नहीं था.
इस छोटे से घर में हर दिन बड़े-बड़े तस्कर आते थे.
मुझे अपने घर से तो किसी के आने की उम्मीद भी नही थी, लेकिन यहाँ कोई पड़ौसी भी सामने तक नही देखता था|
एक बार अखनूर पुलिस के हाथो धरा गया तो उसके सब साथी तस्कर भाग गये, करोड़ों का माल हाथ से चला गया तो उसके साथियों ने उसे टॉर्चर करना शुरू कर दिया
कैसे भी करके उनको रूपयें चाहिए थे.
जब उसके पास कुछ नहीं बचा तो उसने भीखू से दोस्ती की और उनके पैसे चूका दिये।
इसके बाद उसने तस्करी का धंधा छोड़कर लड़कियों को बेचने का काला धंधा शुरू कर दिया|
अनीति का विनाश जरुर होता हैं. अधर्म और बेईमानी की नींव पर खडी की गयी दीवारें ज्यादा महफूज नहीं होती, हल्का-सा तूफ़ान आया नही की वे हिलने लगती हैं |
अखनूर के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाल था.
अखनूर फिर से पुलिस के हत्थे चढ़ गया लेकिन फिर से पैसे देकर छुट गया.
अब वह भीखू का कर्जदार बन गया था.
इसलिए अब उसने आसपास के इलाके के लोगो को ही डरा-धमकाकर लूट-पाट करने शुरू कर दिया, जिससे लोगो में जो पहले से ही उसका डर था अब वह आतंक में बदल गया. शाम होते ही लोग अपने-अपने घरों में दुबक जाते जैसे शोले के गब्बर से डरकर रामपुर वाले दुबकते थे.
शाम को अखनूर घर पर आता तो उसके साथ उसके 2-4 साथी तो जरुर होते..
जैसे-जैसे उसकी तंगहाली ज्यादा होने लगी मुझे ज्यादा डर लगने लगा.
मैंने कुछ कम करने की ठान ली, लेकिन मुझे कोई भी काम नहीं मिलने वाला था कारण था अखनूर,
कौन इतनी रिस्क लेता!
लेकिन मेरा दिन-भर घर में अकेले रहना भी महफूज नहीं था अब, मेरा घर से बाहर निकलना जरूरी था|
एक शाम, मैं घर में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी तभी अखनूर अपने 3 दोस्तों के साथ घर आया,
वैसे वो हमेशा देर रात में ही आता था लेकिन उस दिन वो दिन रहते ही आ गया वो भी 3 दोस्तों के साथ.
मुझे लग गया कि आज मेरे साथ कुछ गलत होने वाला था लेकिन में बेबस थी बस सोचने भर के लिए, कुछ नहीं कर सकती थी|
उन 3 दोस्तों में भीखू भी साथ था .
अभी सूर्यास्त में टाइम था तो अखनूर मुझे सभी के लिए खाना बनाने का बोलकर जंगल में चला गया|
जंगल में जाकर सभी ने जमकर शराब पी, शराब पीते-पीते ही वहां मेरा मोल-भाव हो गया था|
अब वहां इंसानों की जगह 4 शैतान बैठे थे.
लेकिन हर बार ऐसा भी नहीं होता की नियति हमारा साथ न दे|
वो जैसे ही घर की ओर आने लगे की रास्तें में अखनूर को एक काले सांप कोबरा ने काट लिया और उसकी वहीं मौत हो गयी.
अखनूर के मरने के 2 महीने बाद तेरा जन्म हुआ था.
लेकिन इस परिस्थिति में लोग क्या-क्या बातें बनाने लगे ये जगजाहिर हैं.
अखनूर से मेरा पीछा जरुर छुट गया था लेकिन दूसरे शैतान भीखू से हर रोज लड़ना था मुझे.
माँ अपनी बातें कहती रही और सनाया की आँखे आसुओं में डूबी रही.... अब आगे नहीं सुनना चाहती थी सनाया..
मुझे नहीं मालूम इस समय उन दोनों में से किसी को नींद आई या नहीं, लेकिन अपने पाठकों को इतना जरुर बताना चाहताहूँ की इतना सुनने और जानने के बाद एक बेटी जिसने अपने बाप को देखा तक नहीं, उसकी दुश्मन बन चुकी थी.
अबला बनी सबला
अब सनाया कोई मौका नहीं गंवाना चाहती थी कि उसकी भीखू से कोई तकरार न हो. जहाँ भी उसे वो मिलता वो उसे कुछ न कुछ जरुर बोल देती, वो चाहती थी कि भीखू से दो-दो हाथ हो|
सरे आम लोगो के सामने उसने भीखू को उसकी हकीकत बतानी शुरू कर दी.
जब भीखू को लगने लगा की ये उसके लिए खतरा बन सकती हैं तो उसमे छिपा शैतान सामने आने लगा|
बड़ी अजीब विडम्बना हैं ये कि जब किसी गलत आदमी या काम के प्रति लड़ना हो या उसका विरोध करना हो तो लोग एक-साथ बड़ी मुश्किल से आते हैं, वही जब किसी को बदनाम करना हो या फालतू दंगे फसाद करने हो मूर्खो की गेंग बनने में देर नही लगती|
यही भीखू ने किया..
10-12 गुर्गे ले लिए साथ और धमकाने लगा दोनों माँ बेटी को .
ये सच ही कहा की "विनाश काले विपरीत बुध्दि " अब कुछ भी हो सकता था उसके साथ|
इन्सान का दिमाग जब शैतान बन जाता हैं तो उसे सब -कुछ जो वह सोचता हैं सही ही लगता हैं.
शाम का समय आते ही सूरज पश्चिम की और चला गया, रेगिस्तान में जानवर अपने घरों की और लौट रहे थे जिससे उसके पैरों से उड़ी धुल पर सूरज की रौशनी पड़ने लगी तो एक मनोरम द्रश्य बन गया ... इसी समय दोनों माँ बेटी अपने घर जा रही थी की रास्ते में उसे भीखू मिल गया|
उसने दोनों का रास्ता रोक लिया और सनाया की अम्मा से बदतमीजी करने लगा, सनाया ने उसे धक्का मार कर नीचे गिरा दिया,
लेकिन उसकी माँ ने उसे पकड़ लिया और खींचकर अलग कर दिया और उसे लेकर घर की और भागने लगी. उसके लिए ये पहली बार नही था.
भीखू पीछे से आवाज लगता हैं तेरे बाप की हिम्मत नहीं हुई कभी मुझसे ऊचे स्वर में बात करने की भी और ये नारी, औरत, मुझे ललकार रही हैं .
जाते-जाते सनाया ने भी उसे ललकार दिया :-
जब बात अपनों की हो तो हर पल दिल में होती हैं ये भावनाएं.
सनाया बचपन से बहुत बहादुर लड़की थी, घर में माँ और उसके सिवाय था ही नही दूसरा कोई जिससे वो अपनी रक्षा की उम्मीद कर सके|
इसी अकेलेपन ने उसे मौका दिया एक निडर योध्दा बनाने का.
समाज और गाँव के हर एक काम में वह भाग लेने लगी. अपने जैसी बालिकाए जो न तो स्कूल जा पाती और न ही उन्हें घर से बाहर निकलने दिया जाता था उनके लिए मसीहा बनाने की ठान ली थी उसने.
ये बड़ी अजीब और निराश करने वाली बात हैं की जब इसी छोटी-छोटी जगहों से कोई इन्सान कुछ नया करने की ठानता हैं तो पहला विरोध उसके घर परिवार से ही होता हैं खासकर बात जब अंधविश्वास और गलत परम्पराओं के विरोध करने की हो.
खुद अपना वजूद देखो सनाया... निकल पड़ी हो समाज सुधारने को .!!
मेरा वजूद में ही हूँ जनाब... आप बस अपनी लाली को लगाम दो.
गाँव के इस अधेड आदमी को एक टुक जवाब देकर वह आगे बढ़ गई ....
लेकिन इस निडर बाला को अभी बहुत कुछ जानना था इस दुनिया के बारे में.
एक शाम वह पानी लेने के लिए जा रही थी की वहां उसे गाँव का ही भीखू बुखारी मिल गया, और बोलने लगा
अच्छा तो यह हैं समाज-सुधारक??
खुद का पता नही और उपदेश..
हाँ तो क्या ग़लत हैं इसमें चाचा..?
गलत कुछ नही.... लेकिन आज तक कुछ सही भी नही हुआ... यहाँ तक की तुम्हारा जन्म भी.
सनाया कुछ समझ नही पाई. कुछ देर उसकी और देखती ही रह गई..
क्या घूर-घूर के देख रही हैं .. जाकर पूछ अपनी माँ से.. क्या अखनूर ही तेरा बाप था या कोई ........
भीखू आगे कुछ बोलता उससे पहले ही सनाया ने पानी से भरा घड़ा उसके मुह पर दे मारा और भाग गयी अपने घर की ओर..
पीछे से भीखू जोर से आवाज लगता हैं..
तस्कर, चोर, औरतों और लड़कियों को बेचने वाले की औलाद भी आखिर .....
सनाया के कदम रुक गये तो उधर भीखू की आवाज भी रुक गयी आखिर पानी के घड़े की लगी चोट का दर्द अभी जिन्दा जो था.
"तस्कर, चोर, औरतों और लड़कियों को बेचने वाला " बस यही शब्द बार बार गूंजने लगे इस कन्या के कानों में .
सनाया का पिता से नफरत हो जाना
क्या हुआ बेटा.. ?
आँखों में गुस्सा, चेहरे पर हताशा का भाव एक अजीब-सा मनोभाव दिखा रहा था इस समय सनाया के चेहरे पर|
माँ समझ चुकी थी इस मनोभाव को, जरुर किसी ने अनचाहे और कठोर सत्य से रूबरु करवाया हैं इसे.
इतना बड़ा झूठ...?
या सच बोलने से डर लगता था आपको?
ऐसा कुछ नहीं हैं.... क्या हुआ ये तो बताओ
जिस पिता को लेकर मैं इतनी गौरवान्वित थी... सोचती थी बहुत बड़े इन्सान होंगे वो? शायद लोग इसीलिए ज्यादा नहीं बोलते उनके बारे में.
माँ निशब्द थी इस समय|
हाँ बेटा कुछ बातें ऐसी होती हैं जिसके बारे में जितनी कम सच्चाई जानोगे उतना ही अच्छा होता हैं,
उनकी सच्चाई जानना अपनों के प्रति नफरत पैदा करने से ज्यादा कुछ नहीं होता।
ऐसा आपका मानना हैं अम्मा।
आज भीखू बोल रहा था की मैं एक तस्कर, चोर, औरतों और बच्चियों को..
गला भर आया था उसका,
कितना भी मजबूत क्यों न हो कोई इन्सान, माँ के सामने पिघल ही जाता हैं|
आँखों मैं आंसू लिए सनाया इस क्षण अपनी माँ के आँचल में थी.
कुछ भी हो अम्मा मुझे पूरी सच्चाई जाननी हैं.
अब माँ के पास अपने काले अतीत को बताने के सिवाय कोई चारा नही था।
रात सामने थी, पूरा आसमां तारों से सजा हुआ था, घर के बाहर चारपाई पर माँ बैठी थी और सनाया उसकी गोद में सोती-सोती सुनने लगी अपने ही बाप के बुरे कारनामे।
प्रतीकात्मक चित्र |
आज से 18 वर्ष पहले मुझे कोडियों के भाव खरीद कर लाया था अखनूर,
कितनी भी गरीबी क्यों नहीं हो कोई अपनी बेटी को बेचने की बात सोच भी नहीं सकता, लेकिन उन्होंने हकीकत में ऐसा कर भी दिया था.
नियति ने जो लिखा था मेरी किस्मत में वो हो गया.कितनी भी गरीबी क्यों नहीं हो कोई अपनी बेटी को बेचने की बात सोच भी नहीं सकता, लेकिन उन्होंने हकीकत में ऐसा कर भी दिया था.
अखनूर मादक पदार्थों की तस्करी कर खूब पैसा कमाता था, लेकिन कभी मुझे अपनी पत्नी की नजरों से नही देखा था.
में थी तो सिर्फ एक खरीदी हुई वस्तु, कई बार कोशिश की थी मैंने भाग जाने की लेकिन कोई रास्ता भी तो नहीं था.
इस छोटे से घर में हर दिन बड़े-बड़े तस्कर आते थे.
मुझे अपने घर से तो किसी के आने की उम्मीद भी नही थी, लेकिन यहाँ कोई पड़ौसी भी सामने तक नही देखता था|
एक बार अखनूर पुलिस के हाथो धरा गया तो उसके सब साथी तस्कर भाग गये, करोड़ों का माल हाथ से चला गया तो उसके साथियों ने उसे टॉर्चर करना शुरू कर दिया
कैसे भी करके उनको रूपयें चाहिए थे.
जब उसके पास कुछ नहीं बचा तो उसने भीखू से दोस्ती की और उनके पैसे चूका दिये।
इसके बाद उसने तस्करी का धंधा छोड़कर लड़कियों को बेचने का काला धंधा शुरू कर दिया|
अनीति का विनाश जरुर होता हैं. अधर्म और बेईमानी की नींव पर खडी की गयी दीवारें ज्यादा महफूज नहीं होती, हल्का-सा तूफ़ान आया नही की वे हिलने लगती हैं |
अखनूर के साथ भी कुछ ऐसा ही होने वाल था.
अखनूर फिर से पुलिस के हत्थे चढ़ गया लेकिन फिर से पैसे देकर छुट गया.
अब वह भीखू का कर्जदार बन गया था.
इसलिए अब उसने आसपास के इलाके के लोगो को ही डरा-धमकाकर लूट-पाट करने शुरू कर दिया, जिससे लोगो में जो पहले से ही उसका डर था अब वह आतंक में बदल गया. शाम होते ही लोग अपने-अपने घरों में दुबक जाते जैसे शोले के गब्बर से डरकर रामपुर वाले दुबकते थे.
शाम को अखनूर घर पर आता तो उसके साथ उसके 2-4 साथी तो जरुर होते..
जैसे-जैसे उसकी तंगहाली ज्यादा होने लगी मुझे ज्यादा डर लगने लगा.
मैंने कुछ कम करने की ठान ली, लेकिन मुझे कोई भी काम नहीं मिलने वाला था कारण था अखनूर,
कौन इतनी रिस्क लेता!
लेकिन मेरा दिन-भर घर में अकेले रहना भी महफूज नहीं था अब, मेरा घर से बाहर निकलना जरूरी था|
औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर
जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे
- फ़रहत एहसास
एक शाम, मैं घर में खाना बनाने की तैयारी कर रही थी तभी अखनूर अपने 3 दोस्तों के साथ घर आया,
वैसे वो हमेशा देर रात में ही आता था लेकिन उस दिन वो दिन रहते ही आ गया वो भी 3 दोस्तों के साथ.
मुझे लग गया कि आज मेरे साथ कुछ गलत होने वाला था लेकिन में बेबस थी बस सोचने भर के लिए, कुछ नहीं कर सकती थी|
उन 3 दोस्तों में भीखू भी साथ था .
अभी सूर्यास्त में टाइम था तो अखनूर मुझे सभी के लिए खाना बनाने का बोलकर जंगल में चला गया|
जंगल में जाकर सभी ने जमकर शराब पी, शराब पीते-पीते ही वहां मेरा मोल-भाव हो गया था|
अब वहां इंसानों की जगह 4 शैतान बैठे थे.
लेकिन हर बार ऐसा भी नहीं होता की नियति हमारा साथ न दे|
वो जैसे ही घर की ओर आने लगे की रास्तें में अखनूर को एक काले सांप कोबरा ने काट लिया और उसकी वहीं मौत हो गयी.
अखनूर के मरने के 2 महीने बाद तेरा जन्म हुआ था.
लेकिन इस परिस्थिति में लोग क्या-क्या बातें बनाने लगे ये जगजाहिर हैं.
अखनूर से मेरा पीछा जरुर छुट गया था लेकिन दूसरे शैतान भीखू से हर रोज लड़ना था मुझे.
माँ अपनी बातें कहती रही और सनाया की आँखे आसुओं में डूबी रही.... अब आगे नहीं सुनना चाहती थी सनाया..
मुझे नहीं मालूम इस समय उन दोनों में से किसी को नींद आई या नहीं, लेकिन अपने पाठकों को इतना जरुर बताना चाहताहूँ की इतना सुनने और जानने के बाद एक बेटी जिसने अपने बाप को देखा तक नहीं, उसकी दुश्मन बन चुकी थी.
अबला बनी सबला
अब सनाया कोई मौका नहीं गंवाना चाहती थी कि उसकी भीखू से कोई तकरार न हो. जहाँ भी उसे वो मिलता वो उसे कुछ न कुछ जरुर बोल देती, वो चाहती थी कि भीखू से दो-दो हाथ हो|
सरे आम लोगो के सामने उसने भीखू को उसकी हकीकत बतानी शुरू कर दी.
जब भीखू को लगने लगा की ये उसके लिए खतरा बन सकती हैं तो उसमे छिपा शैतान सामने आने लगा|
बड़ी अजीब विडम्बना हैं ये कि जब किसी गलत आदमी या काम के प्रति लड़ना हो या उसका विरोध करना हो तो लोग एक-साथ बड़ी मुश्किल से आते हैं, वही जब किसी को बदनाम करना हो या फालतू दंगे फसाद करने हो मूर्खो की गेंग बनने में देर नही लगती|
यही भीखू ने किया..
10-12 गुर्गे ले लिए साथ और धमकाने लगा दोनों माँ बेटी को .
ये सच ही कहा की "विनाश काले विपरीत बुध्दि " अब कुछ भी हो सकता था उसके साथ|
इन्सान का दिमाग जब शैतान बन जाता हैं तो उसे सब -कुछ जो वह सोचता हैं सही ही लगता हैं.
शाम का समय आते ही सूरज पश्चिम की और चला गया, रेगिस्तान में जानवर अपने घरों की और लौट रहे थे जिससे उसके पैरों से उड़ी धुल पर सूरज की रौशनी पड़ने लगी तो एक मनोरम द्रश्य बन गया ... इसी समय दोनों माँ बेटी अपने घर जा रही थी की रास्ते में उसे भीखू मिल गया|
उसने दोनों का रास्ता रोक लिया और सनाया की अम्मा से बदतमीजी करने लगा, सनाया ने उसे धक्का मार कर नीचे गिरा दिया,
लेकिन उसकी माँ ने उसे पकड़ लिया और खींचकर अलग कर दिया और उसे लेकर घर की और भागने लगी. उसके लिए ये पहली बार नही था.
भीखू पीछे से आवाज लगता हैं तेरे बाप की हिम्मत नहीं हुई कभी मुझसे ऊचे स्वर में बात करने की भी और ये नारी, औरत, मुझे ललकार रही हैं .
जाते-जाते सनाया ने भी उसे ललकार दिया :-
"ना मैं अबला ना बेचारी ना मैं अधीर हूँ
बस अधीन हूं इंतजार में वक्त के थोड़ी-सी.
बन के शक्ति आज मैं तेरे काल के लिए लवलीन हूँ. "
तेरी मौत बनकर आ रही हूँ ....
वो दोनों घर पहुची तब तक एक भीड़ भी उसके घर की तरफ आ रही थी .
कुछ ही समय में अखनूर और बहुत सारे बदमाश उसके घर आ धमके.
सनाया की माँ को खीचकर बाहर ले आया और बोलने लगा .
जब जरुरत पड़ी तो मैंने अपनी सम्पति दे दी थी इसके बाप को और आज यही मुझे जान से मारने की धमकी दे रही है.
देखो देखो ??
वह सभी की झूठी सहानुभूति प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था.
वह सभी की झूठी सहानुभूति प्राप्त करने की कोशिश कर रहा था.
आसपास खड़े लोग बस देख रहे थे ये नजारा.
कोई कुछ न बोल रहा था|
अब सनाया कुछ भी नही सहन करने वाली थी...
चारों और नकारात्मक शैतानी चेहरे थे वहां पर .. लेकिन एक शक्ति-स्वरुप देवी आ चुकी थी वहां ... इस दैत्य को कुचलने के लिए.
भीखू ने सनाया की माँ को धक्का मारकर जमीन पर गिरा दिया...
उधर सनाया ने घर में रखा एक खंजर उठा लिया जिससे उसका बाप अखनूर लोगो को डराता था ,
और बढ़ चली उस दैत्य की ओर जो सबके सामने उसकी माँ की इज्जत लूटने को आतूर था|
जिस नारी को सिर्फ कथनों में ही शक्ति बोलते या कहते सुना था वो हकीकत में वहां आ चुकी थी|
सनाया ने खंजर उठाकर जोर से दे मारा भीखू के सिर पर और वो धड़ाम से जमीं पर गिर पड़ा|
उसने पलटकर देखा तो सामने शक्ति-स्वरुप विकराल रूप में हाथ में खंजर लिए खड़ी थी सनाया.. जुबान बंद हो गयी थी उस दैत्य की जो खून पीने की बातें किया करता था .
आस-पास खड़े कायर जीव तो इस तूफ़ान में कब उड़े उनको ख़ुद को भी नहीं मालूम चला था, कुछ तो वही पर जमींदोज हो गये थे केवल उस विकराल रूप को देखने भर से|
डर और निडरता में, बस एक पल और एक कदम का ही अंतर होता हैं|
सनाया ने पिछले ही पल एक कदम उठाया निडरता के साथ की भय भाग चूका था उन कायरों के साथ, जो पिछले पल तक डराने के लिए आये थे.
सनाया ने पिछले ही पल एक कदम उठाया निडरता के साथ की भय भाग चूका था उन कायरों के साथ, जो पिछले पल तक डराने के लिए आये थे.
माँ एक और खड़ी थी ....
वो जीवन दान मांगता उससे पहले ही एक और वार हो चूका थे उसके सीने में खंजर का... ..
अखनूर ने जो खंजर लोगो के डराने के लिए रखा था उसी से उसकी बेटी ने डर को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया..
माँ लिपट गयी उस बेटी से जो शक्ति स्वरुप पैदा हुईं थी उसी की कोख से..
आज की शाम बुराई के खात्मे के साथ ही ख़त्म हुई, कल की सुनहरी सुबह कैसी होगी ये पाठक स्वयं समझ गये हैं
लेखक : हीरा लाल भारतीय |
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